सँपवा, ए-ए आदमी देखी के हमरों घरों के पिछलका भीती पर चढ़ना शुरू करी देलकै। कि आव नै देखलियै ताव, हम्में कुल्हड़िया के पान दुकानी के ई बेंत खिंचलियै आरो साँपों दिस बढ़लियै। हमरों हाथों में बेंत देखी के सब बोलें लागलै, 'हे हे, कपिल, है की करै छों, सावन में साँप मारै छौ। है की साँप छेकै, भोलेनाथ ही छेकै।' आर्बे सोचें सकीचन, हम्में देखी रहलो छियै कि साँप हमरों दिवाली पर चढ़ी रहलों छै, आरो धूरी घोष हमरा बताय रहलों छेलै कि भोलेनाथ छेकै। अरे, जो भोलेनाथ छेलै, तें उठाय के आपनों घोर लै जैतियै। से तें नै। हौ तें विरिज काका के मंझलका बेटा छेलै, नै तें तखनिये जवाब दै देतियै।”
"तबें होलै की ?”
“अरे होतियै की ? हम्मे दूरे से साँप के ई लम्बा बेंत से हटैलियै। आतें साँप उलटी के चेतु मिसिर के दुआरी दिस सरपट मुड़लै। फेनु की छेलै, अभी तांय जे चेतु मिसिर जय भोले नाथ करी रहलों छेलै, ऊ सीधे आपनों दरवाजा बंद करै लें दौड़लै। केवाड़ बंद होय के फटाक सना आवाज होलै, तें सँपवों वहा तेजी से फेनु मुड़लै आरो हौ जे कापरी काका के फुलवारी छै नी, साँप ओकरहै में फुफकारले ढुकी गेलै... कापरीका के फुलवारी में साँप ढुकै के मतलब छै, साँप केकरो घरों में कखनियो घुसे पारें। से सब फुलवारी के चारो दिस से घेरी लेलें है। हम्मे देखी लेलें छियै, आबे केकरो मुँहों पर सावन में साँप-दर्शन के महिमा नै छेलै आरो हमरा यहू मालूम है कि हौ खोखन काका रहें कि कापरी काका आकि चेतु मिसिर ही कैन्हें नी रहौ; सब साँप के साथ कौन व्यवहार करैवाला छोत। वही से हम्में हिन्नें चल्लो ऐलियौ, नै ते आब्हौ पारतियै की। तें की बात भेलौ, से सुनाव!"
"है बात तें तैय्ये छै कि काँवर लैक देवघर जाना है, बस नया बात एतन्है टा जुड़लै कि सुल्तानगंज से गंगाजल भरै के बदला चीर नद्दी के ही जॉल काँवर में भरलों जाय आरो मसूदन बाबा के दुआरिये से बोल बम के नारा दे सीधे देवघर।"
“एकदम फिट सोचलें हैं। हम्में ते पहिलो कहले छेलियौ कि सुल्तानगंज के गंगा आरो मंदार के चीर में फरक करना मुरखौआ बात छेकै। वहाँ अजगैवीनाथ के मंदिर छै, तें यहाँ सीधे भोला बाबा के घोर, मंदार। वहाँ