जहूनुऋषि तप करै छेलै, तें ई चीर नदी पर परशुराम धनवंतरी ऋषि तप करै छेलै। है हम्मे नै कहै छियौ, पुराण कहै छै, पुराण। तोरा सिनी के निर्णय एकदम फिट छौ, आरो आबे हम्मे फेनु हुन्ने कापरीका के फुलवारी दिस जाय छियौ। आदमी के सोभाव जानवे करै हैं, ओकरा पर चेतों मिसिर, अरे कहीं हमरों घरों दिस नै ऊ साँपों के सिधियाय दै आरो सब हर-हर भोले बाबा करलें आपनों घोर दिस चलै छियौ सकीचन, आबे साँझे भेंट, बोल बम।” आरो सधैँ एक्के साथ नारा देलकै, "बोल बम!"
(२)
सावन बीती गेलों छेलै, भादो भी, आसिन भी आरो फेनु कातिको। सत्ती आपनों ऐंगन के औसरा पर बैठली-बैठली सोचै छै, “आरो के बात तें आरो छे, मतरकि हमरों कोखी के जनमलों है अमर, की रं आपनों पेटों में है बात के गुड़मुड़ियैले रही गेलै ! हे भगवान, जों कजायत हेनों-हेनों होय जैतियै, ते ई अभागिन के दसों दिशाहै नी बंद होय जैतियै ।” आरो फेनु ऊ आपनों अँचरा आपनों हथेली में राखी दोनों हाथ भगवान दिस उठैतें कहलकै, "देखियों देव, माँगों के सिनूर नै राखें पारलें, तें कोय बात नै, कोखी के सिंगार बचैलें राखियों।”
सत्ती के ठीक उतरवारीवाला ऐंगनों में घमासान मचलों होलों छेलै। उतरवारीवाला ऐंगनों ओकरों भैसूर आशु बाबू के छेलै। पहिले तें दोनों ऐंगनों एक्के छेलै, आठ-दस कट्ठा के ऐंगन, जेकरों दक्खिन दिशा में लम्बा-लम्बी दू कट्ठा में बनलो एक्के कोठरी में बीचों से दीवार के दू बड़ी-बड़ों कोठरी बनाय देलो गेलो छेलै, आरो कोठरी के ठीक बीचवाला दीवार के सोझे-सोझी ऐंगना में एक मोटों रँ माँटी के दीवार दै देल गेल छेलै, जेकरा से दू परिवार के अलग-अलग रहै के साफ-साफ बोध होय छेलै। दीवार के सिरा पर छोटों-छोटों बाँसों पर परछत्ती बनलो होला छेलै आरो दीवारिये से सटलों-सटलों देहरी, जेकरा पर एक आदमी तें आराम से