Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/11

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करवट- उरवट लिऐ पारें, सुतै पारें; चौड़ाई एतन्है छेलै आरी लम्बाई तें एतन्है कि पाँचो-छों आदमी लम्बा-लम्बी सुती रहें, तहियो जग्घों खालिये बची रहें। आँगन से लागलों औसरा बच्चा के पढ़े-लिखे से लैके मोर - मरदाना के खाना-पीना तक में काम आवी जाय छेलै।

आय व औसरा पर सिमरन, भदेवा, मंगलिया, बदरी साथें सकीचन, कपिल, गुलगुलिया आरनी जमलों होलों छेलै, आपनों आपनों पक्षों में सफाई देतें। बीचों में अमरजीत के बड़का बाबू आशुतोष घोष चुपचाप सबके बात सुनी रहलों छेलै, बोलै कुछ नै छेलै। भदेवा आरनी में से जेकरा भी जे कुछ कहना रहै, झट सना देहरी से उठी के हुनको सामना में आवी आपनों हाथ हिलाय - हिलाय कहें लागे। जबें पारी बदरी के ऐलै, ते वैं एक दाफी देहरी पर बैठलों सिमरन से लैक गुलगुलिया तक के देखलकै। फेनु कहें लागलै, "बड़का दा, यै सबमें जे भी जे कुछ बोललौं, एकदम झूठ बोललौं। अमरजीत के हमरे में से कोय सनकैले छेलै कि जो हियाव छौ, तें ई शिवगंगा पार करी दिखाव। सौन-भादों में चीर नदी पार करवों आसान छै, मतरकि शिवगंगा के हेली पार करवों; समुद्र के लाँघों छेकै। ई आपनों गाँव के तालापुल नै छेकै कि हिन्हें से कुदलौं आरो हुन्ने से निकललौं।”

“आर्बे की कहियौं, अमरा ने आव नै देखलकै ताव, धौंस दइये तें देलकै, धोतिये पिन्हलें आरो पच्चीस-तीस शेरवाला रेहू मछली नाँखी शिवगंगा में छप छप करते बीच लाट तांय बिना पलक मारहैं पहुँची गेलै। मतरकि छप-छप करै में ही धोती ठो ढील पड़ी गेलै आरो अमरजीत के गोड़ों सें लतफनाय गेलै। पहिलें तें हमरासिनी यह बुझलियै कि बीच में पहुँची के शिव गंगा के थाहै के कोशिश करी रहलों छै; जबें ओकरों हाथ-गोड़ ढीला पड़ें लागलै; नै हौ छप-छप, नै हौ गति, तबॅ हमरासिनी के शंका भेलै आरो बातो ठो समझ में आवी गेलै। मतरकि हमरासिनी में हेलवैय्या कोय रहें त नी। चीख-पुकार मचैबों शुरू करी देलियै। दुर्भाग देखों, कि वहाँ कोय हेलवैय्या बम भी नै छेलै, जे कूदी जैतियै। हौ ते भोलाहे बाबा रॉ किरपा कहों कि तखनिये लतफनैलो धोती सोझराय गेलै आरो अमरजीत पानी पर लेटी झब सना धोती सड़यैले छेलै आरी पट सना पलटी के एक्के साँसे शिवगंगा हेली गेलै | नै ते बड़का दा, तें बड़का दा, जे अपयश हमरासिनी के मार्थो पर लगैतियै, ओकरा सें तें ई जिनगी भर उबरना मुश्किले छेलै। गोबध के पाप।