Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/8

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अबकी तें सकीचन, बलजीत साथें माधो भी आपनों हँसी नै रोकें पारलकै आरो ठठाय के हाँसी पड़लै । कि तखनिये अजनसिया गंभीर होय गेलै, आरो आपनों निचलका ठोरों के दबैतें कहलकै, "मतरकि है कहानी कहै के की मतलब? माधो तोहें बिना मतलब के कोय कहानी तें कहें नै पारें।”

"ठीक पकड़लैं तोहें, अजनसिया; बिना मतलब के तें आँखी के पिपनियो नै हिलै छै। देख, सिंधनाथ पंडी जी तें लम्बा - लम्बा हाँकी गेलै कि देवघर के बाबा पर सुलतानगंज के गंगा-जल चढ़ें-तभिये पुन्न, नै ते सौ नै कोस के जतरा बेरथ| देख अजनसिया, जबें पंडी जी के मंतर पढ़ला से पेटों के गदहा पाठा होय जावें पारें, तें है चीर के पानी काँवर में जग्घों पैहैं गंगाजल कैन्हें नी बनें पारें । यहाँ से लैकें देवघर तांय जबें बोलबम के मंत्र जाप होते, तें चीर के जलो जरूरे गंगाजल बनी जैतै, की है बात तोरासिनी के समझ में नै आवै छौ।”

माधो के बात सुन हैं सब गंभीर होय उठलों छेलै। सकीचन ठोरों से अंगुली हदैते कहलकै, "माधो गलत की बोली रहलों छै सुल्तानगंज से गंगाजल भरो कि चीर-चानन सें, बात सब बराबरे छै। मोन पवित्र होना चाहियों । फेनु सुल्तानगंज के बदला जो हमरा सिनी मसूदन बाबा के दुआरिये से काँवर उठाय छियै, तें सोची लें आधा जतरा के थकान ते हेन्हें बाबा भोलेनाथ कम करी देलकै। की अमरजीत, जरा बातों पर गौर करें।”

“लें, कपिलदेवो आवी रहलो छै, आबें ओकरों की मत बनै छै, यहू जानी लेना चाहियों, हमरा सिनी लें तें माधों के मत ही फिट बुझावै छै। ” अमरजीतें आपनों कोकड़ी सहलै बोललै।

ओकरों बोलना छेलै कि सब के नजर कपिल मिश्र के दिस गेलै, जे हाथों में एकटा लम्बा बेंत घुमैले घुमैले आवी रहलों छेलै । कपिल मिश्र के नगीच ऐहैं सकीचन बोललै, "की कपिल, आय बेमौसम हाथों में बेंत देखै छियौ । घरों में कुछ होलौ की ?”

“अरे घरों में की होतै, मुहल्लावाला से होलै। घरों के पिछुवाड़ी में हौ जे बड़का नाला छै नी, नै जानौं कहाँ से वैमें पाँच हाथों के साँप छत्तर काढ़ी रहलों छेलै । देखवैय्या के उसमठस भीड़| सब के मुँहों से एक्के बोली- धन्य हमरों भाग, जे भोले बाबा आपनों दर्शन करैलकै । की कहियौ,