दोस्त, चारो पकिया यार, पूजा से ले के चोरी तांय साथें रहैवाला। वैमें पंडित के बिचलका बेटा संतोषो एक मित्र.........एक दिन चारहों प्लान बनैलके कि आयकों रात डगरा धोबी क॑ पाठ के जब्हें करलों जाय। फेनु की छेलै-चारो ओकरों घरों में घुसले आरो ऊ टापे-टुप अन्हरिया राती में ऐंगनॉवाला टटिया कल्हें-कल्हें हटाय कें पाठा उठाय लै आनलके आरो हसिया-कचिया से ओकरा दकची-हुकची, छीली-छीली के रान््हीं लेलके | फेनु की छेलै, राते भर में चार सेरॉ के माँस चारो के पेटों में अँटी गेलै। विहान होलै, तें डगरा धोबी के कनियैन गाँव भरी में कानना-बाजना शुरू करलकी-'हमरों गदह़ा बच्चा के राती टटिया खोली के कौनें चोराय लेलके | लौटाय दो, ने तें यशपुरा जाय के काली माय के कबूलती कबूली ऐवै, हों........” आबें तें चारो मित्र खाली एक दूसरा के मुँ ठुकटुक देखै-पाठा के बदला गदहा-बच्चा के माँस रात भर चिबैतें रहलों छेले। जीहा के सवाद बदलना शुरू भै गेलो छेलै |”
एतना सुनीकें अजनसिया, कललर, सकीचन आरी अमरजीत तें हँसतें-हँसतें जेना लोटपोट। मत्तरकि माधों के मुँहों पर कटियो टा हँसी ने छेलै, जेना वैं कोय बड़का गंभीर बात बत्ताय रहलों रहें । केकरो हँसी पर बिना ध्यान देल्हें वैं आगू कहलके, “आबें ते चारो के ई शंका सतावें लागलै कि है जे पाठा के जग्घा में गदहा खाय लेलें छै, ओकरों छुत्त सें ऊ सब केना बचत्तै? तबें पंडित के बैटा छोड़ी के तीनो साथीं विचारलके कि है बात पंडिये जी के कही देलों जाय, हुनिये है पापों के निवारण करें पारै, कैन्हें कि है कार्मों में हुनकों बेटाहौ शरीक छे।
“फेनु की बात छेलै, चारी दोस्त पंडित जी के पास पहुँची गेले। सब बात सुनी के पंडी जी मार्थों ठोकी लेलके, मतरकि बात तेँ हुनकों बेटाहौ के छेले। से हुनी बोललै, “अच्छा घबड़ाय के कोय बात ने छै | एक मंतर छै, जे ई पारषों से मुक्ति दिलावें पारें। फेनु की छेलै-तड़ातड़ ऐंगनों गोबर से जेना-तेना निपैज्ों गेले। आसन बिछलों गेलै। धूपों-धुमनों जलैलों गेलै। पोथी-पतरा खोललों गेलों | पंडित जी आसन पर बैठला आरो जनेऊ पर तीन-चार लम्बा हाथ फेरतें मंतर पढ़लकात, “चार चोर, एक संतोष, गदहा खैलें क॒छु ने दोष।' आरो कहलकै-जो, आबें चारो गदहा खाय के पापों सें मुक्ति पावी गेलों छैं |”