Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/6

From Wikisource
Jump to navigation Jump to search
This page has been proofread.

सत्ती बोदी

“सुन, तोरा सिनी के एक ठो कहानी सुनाय छियौ” माधो मिसिर नें आपनों दायाँ तर्जनी से दायाँ आँख मुनी लेलें छेले, जेना कहानी के कोय बात याद करै के कोशिश करते रहें, आरो फंनु मूंडी के एक झटका दे, आँख खोलतें कहनें छेलै, “गाँव के तें नाम ने याद आवी रहलों छै, मत्तरकि है खिस्सा छेके आसे-पासे गाँव के; चाहे पँचपुरा के रही, आकि बहबलपुर के आकि आपने गाँव के । मतरकि है आपनों गाँव के खिस्सा ने हुएँ पारें | ई छोटों गाँव आरो सबटा पंडिते के घोंर; तीन घोंर खाली तोरों कैथों के, की अमर-ठीक छै की नै? ई कहानी खाली हमरों गाँव के बदनाम करै लेली उड़ाय देलों गेलों छै-बाबू साहब सिनी के करतूत होते । अभियो सुनवे नी करे छैं--कहै छै, महापात्तर कहिया के पंडित भै गेलै | पंडित के मतलब होय छै-पुजारी, जे मंदिर में पूजा करावें | महापातर समसानी में पूजा करावे छे, ऊ पंडित कहिया के! आबें तोंही बताव अमर, पंडित पँचपुरा दुर्गा मंदिर के रहें कि चीर के मुर्दघट्टी में पुराण पढ़ैवाला-पंडित नी भेले |”

“माधो, तोंय कोय कहानी बत्ताय लें जाय रहलों छेलैं, है कॉन पुराण लै के बैठी रहलैं?” अमर नें ओकरा टोकलें छेलै। वैं माधो के खूब जाने छै, जॉन बात के लैकें ऊ उठे छै, ओकरा पर कभियो टिक्है ने पारें । कहतें-कहतें ऊ वहाँ पहुँची जाय छै, जहाँ पहिलकों बात ओकरा कुछुवे ने याद रहे छै आरी फेनु ऊ खिस्सा छोड़ी के कोय दोसरॉ-तेसरों गप्प उठाय लै छै।

अमरजीत के टोकला पर माधों कहना शुरू करलके, “हों, तोहें ठीक टोकलैं, कहानी कोय्यो गाँवों के रहें, मजकि छेके एकदम सच्च- चार