Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/47

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जब फूलमती के बड़काहै मामा फूलमती के बीहा लें तै- तमन्ना करी रहलों छै, तें हमरा कैन्हें ई लागी रहलों छै कि बोमाँ फूल के शादी-बीहा लें हमराहै सें बातचीत करतियै । ई हमरों घरों के मामला छेकै, हम्मे सोचतियै, जों फूल के मामा के सहयोग करना छेलै, तें ऊपरों से करतियै.... मतुर बोमाँ के हमरा पर नै, अपनों लालदा पर बेसी भरोसों छै, यही लें... रहौ, मतुर कोय हेन्है के एतें झंझट माथा पर उठाय लै छै की? कोय-नै-कोय लाभों के बात तें होवे करते | नै आरो कुछु, ते एतना तें जरूरे कि अमर मैट्रिक पास करिये गेलै, एक-दू क्लास आगू पढ़ें-नै-पढ़ें, कोय-नै-कोय सरकारी नौकरी धरले छै. .. आरो फेनु ओकरों गार्जन तें हुनिये नी, हमरा कन कोय उतरवे नै करतै; जे भी संबंध लें उतरतै, तें अमर के मामाहै कन । तखनी बोमाँओ के कुछ नै चलतै, केना चलतै । आखिर अमर के सब किसिम से लायक बनैलें छै, तें ओकरों बड़के मामा नी । तखनी लक्ष्मीकांत के वचन कहाँ से रहते, जे आपनों समाज में हाथ उठाय के कहले छेलै.....

आशु बाबू के लागलै, हुनको सिर कुठु भारी हेनों लागेँ लागलों छै । हुनी अजनसिया के आरो प्रतीक्षा नै करी के चुपचाप बड़का औसारा से नीचे उतरलै आरो पछियारी टोलों दिस निकली गेलै, मणि बाबू के घोर दिस।

(१२)

बेरा डूबै- डूबे पर होतै, जखनी आशु बाबू आपनों दुआरी पर लौटलों छेलै । देखै छै, अजनसिया बरांडा पर बैठलों अकेले में हाँसी रहलों छै । ओकरों गुदगुदी के तें एकराहे से पता चली रहलों छेलै कि हाँसै वक्ती ओकरों ठोर तें कुछुवे फैलै, मतुर रही रही के पेट ऊपर-नीचें खूब हुएँ लागे ।

“की बात छै, अजनासी ? कथी वास्ते ई हँसी छेकै?” आशु बाबू के आवाज सुनलकै, तें सीधा होतें कहलकै, “आबे बैठवौं, बड़ों दा, तबे नी सुनैभौं । ऊ रोगी-आसरम केरों लीला ।”

आशु बाबुओ के मनों में वहाँकरों बात सुनै के उत्सुकता तें छेवे