Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/45

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सीधे खरीस से आमना-सामना होय गेलै । हौ पाँच-छों हाथों के खरीस देख है ओकरों जी तालू से सट्टी के रही गेलै । दू-चार गोड़ पीछू हटी के हेनों छलांग मारतें घरों दिस भागलों छेलै, जेना लेरुआ के बाव लगलों रहें । आबें वही दिनों से ऊ, भले ही साफ-सुथरा रास्ता से निकलै, दू-तीन कदम आगू बढ़ी के रुकी जाय छै, आरी फेनु आगू बढ़ से पहिलें दू-चार बार चुटकी जरूरे बजावै छै, ताकि कोय आखरी - पिपनी हिन्ने हुन् छिपलों रहें, तें भागी जाय ।

आशु बाबू के ध्यान तभिये टूटलों छेलै, जबे अजनसिया देहरी के नीच्दै से आवाज देलें छेलै, "गोड़ लागै छियौं, बड़का दा ।”

“अरे अजनासी, आव, आव ! देहरी के नीचे में कैन्हें हैं, ऊपर आवी जो, हौ चटाय छै, बिछाय के बैठी जो | तोरेसिनी वास्तें तें ई चटाय बनवैले छियै, तीन हाथों के। मॉन हुऍ ते कोय गोड़ो पसारे पारें ।”

अजनसिया देहरी पर बिना चटाय बिछैले बैठी रहलों छेलै, ई कहते हुए, "चटाय के की जरूरत है, बड़का दा | गोबरों सें नीपलों-पोतलों जमीन, पक्का मकानों से की कम छै, जे चटाय बिछाय के कष्ट करौं।” “खैर, कोय बात नै । बोलें, कुछु खास बात की ?”

“की हेन्है के तोरा सें भेंट-मुलाकात करै वास्तें नै आवें पारौं, खाली कामे लैक ?

“अरे नै नै, कैन्हें नी आवे पारें । हमरों घोर हेकरा लेली कबें बंद रहलों छै, आरो गाँव वाला वास्तें तें रातो भर खुल्ला ।" “से बात तें छेवे करै, बड़का दा । यही कारण है कि सौंसे गाँववाला के दिली तो वास्तें खुल्ले रहै छौं, तनी-मनी केकरो बंद रहै छै, ते सोगारथ दा के।" ई कही अजनसियां आशु बाबू के कनखियाय के देखले छेलै, कि आखिर ई बातों के हुनको ऊपर की असर होय छै । अजनसियों के ई बात मालूम छै कि आयकल आशु बाबू दखनाहा टोलों नहिये के बराबर जाय छै, कैन्हें कि सोगारथ वही टोलों में आपनों 'आरोग्य-आसन-आश्रम' खोललें होलों छै ।

आबे आशु बाबू के मनों में भले जे कुछ रहें, मतुर हुनी है भाव के कभियो केकरी सामना में परगट नै हुऍ देलकै । जबें अजनसिया के मुँह से ई बात सुनलकै, तें पहले यही पुछलकै, “अच्छा अजनासी, ई तें बोल, वैं