साकलदीपी ब्राह्मण बनी के रही रहलों छेलै, भागलपुर के छात्रावास में । आरो जबें पता चललै कि साकलदीपी नै, महापात्र छेकै, तें की की नै दुर्दशा... ।”
“अरे, ई तें तीस-चालीस बछर के बात भै गेलै । आय ई सब थोड़े होय छै?"
“अरे होय के तें गामों में हिन्दु-मुसलमान के घोर सट सट होय छै, तें की मनो ठो की? दूर के बात छोड़ी दें, सत्ती बोदी मसूद्दी काका के यहाँ जनानी होय के जाय छेलै, तें की मसूद्दी का हिन्दू बनी गेलै कि बोदिये मियैन होय गेलै । होने के ब्राह्मण-ब्राह्मण में भेद बुझें। पकड़ी के कोय राखले छै की, मतुर है बात केन्हौ के नै भूले पारै छियै कि श्राद्धी के बाद जबें पूजा-पाठ कराय के विसुनवां द्वारी से उठलों छेलियै, ते विसुनवां एकटा कनखो उठाय के हमरों दिस करतें गिराय देलें छेलै । वैं की समझे छेलै, हमें ई बात नै जानी रहलो छेलियै । कोन्हराय के तहीं से तें देखी लेलें छेलियै ।”
“धुर, छोड़ें ई सब बातों के ।”
"छुटले छै, कौंने पकड़ी के रखले छै । मतर कनकटलों घैलों आगिन पर चढ़ले रहै के बात.... ।”
"माथों ले धरले छै । ऊ सब बात कभी सोचलें छेलें कि सत्ती बोदी के घरों में बिना रोक-टोक घुसना छै आरो बदरी हुनके बिछौना पर टाँग पसारी के सुती रहतै, आय छोटका ऐंगन के बिछौना पर की रं पहुना नाँखी जमी जाय हैं। की रं भनसो घरों में ढुकी के खाना परोसी लै छै । देख, आदमी बानर के विकास छेकै, ते की आदमी दोनों हाथों से अभियो चूतड़ के नीचे आपनों नगेट्ठी खोजलें फिरै छै । खोजवी करतै, ते मिलतै की ? बुड़बक, ऊपर उठी गेलों हैं, तें सरंग के बात करें । की लै दै के नगेठी पकड़ी लै हैं ।
“अरे बुड़वक, हौ बुच्चों बाभन, है बुच्चों बाभन है सब कथी लें घोकर्ते रहे हैं । की समझे हैं, कि है सब कहला से नौकरी में आरक्षण मिली जैहौ की । आखिर तखनी बाभने घोषित होय जैवे, भले आरी बाभन तोरी बाभन बूझौ- नै - बूझौ । की बूझे हैं, सब कैथी की एक्के समान होय छै । वाहूँ सीढ़ी बनलों छै । एक, दू, तीन, चार बलजीत के बड़का बाबू अपना के