(५)
'एकठो अमरजीत की गामों से निकललों छै, सौंसे पाँच घरों के कैथटोलिये हवांख लागे छै।" सिद्धीं बायां तरहत्थी के खैनी के चुटकी से चाँपते कहलकै, आरो निचलका ठोरों के आगू बढ़ते ओकरों जड़ी में राखी लेलकै।
“की बोललैं, कैथ-टोली।" बदरी के ई बात अजीबे लगै छै, कि पाँच घरों से भला टोलों केना बने पारें, मतर ई शंका के दबैते एतन्है बोलले, "घोर कहै नी, तीन गोतिया, पाँच घोर बनाय लै, तें टोलों केना बनी जैतै। टोला के मतलब छेकै, कम-से-कम दस घोर।” “यहा नी बूझें रे, बदरी, की रं चलती छेलै, अमर के परबाबा केरों। जखनी नदिया से आवी के यहाँ बसी गेलै, तहिये से ई कैथटोली कहावै छै, आदमी की, सौ-पचास? बस दस-पाँच ठो। वहू की यहाँ रहै हुनी? कभी बाँका, कभियो कहूँ, तें कभियो कहूँ। हमरों बाबा बोलै छेलै कि हुनी बड़ी दबदबावाला छेलै। चम्पा नगर के महाशय ड्योढ़ी से सीधे संबंध छेलै, ई कहैं कि हुनिये हिनका यहाँ मालगुजारी उगाहै ले राखले छेलै। ई सब महाशय जी के इलाकाहै में पड़े छेलै, जमीन-जायदाद अफरात छेलै। जे जहाँ बसी गेलों, तें बसी गेलों। के पूछे छेलै, जमीनों कें। है नी कहैं कि पकड़ी-पकड़ी के बसाय छेलै। हिनी जबें यहाँ ऐलों छेलै, तें एक घोर नै छेलै। कोय यहाँ बसै लें नै चाहै छेलै, बहू में जहाँ विरिज काका हेनों आदमी बसें । कहै छै नी कि कैथों के मरलों हड्डी विसाय छै। कखनी कोन फेर में फाँसी दें।” बदरी एक अंगुरी से निचलका ठोरी के दाबतें जोरों से हाँसी पड़लै कि खैनी ठो बाहर नै छिलकी आवें।
“आरो बसलै, तें हमरोंसिनी के पूर्वज के टोला में, जेकरो डरों से अच्छा- अच्छा ब्राह्मणों काँपै छै।" बदरी ठोर बन्द करले हाँसलै।
“ उल्टाहै सोचलें, बदरी। एकरा में महापात्र के कोय रौब-दाव नै दिखै छै, एकरा से तें घोषे परिवार के महानता दिखै छै। जे महापात्र के बारे में केन्हों-केन्हों बात अभियो तांय प्रचलित छै, हुनी आपनों घरों के दक्खिन में नै, पश्चिम में जमीन दै के बसैलकै, आरो आपनों घरों के ऐंगन तांय हमरा सिनी वास्तें खोली देले छेलै। बदरी, तोरे नी गोतिया छेकौ, विसुआ;