शांत करै वास्ते यहू कहतै, कि काम हम्मी करलें छियै, तहियो नै! हम्में जानै छियै, एत्तें बड़ों पाप गाँव-टोला के लोगें तें की, आरो गाँव भरी के लोगो नै करें पारें। कुछु हमरों भागे के दोख होतै। दोख नै होतियै, ते अमर के बाबू ई दुनियाँ में हमरा असकल्ले छोड़ी के भगवानो लुग जाय पहुँचतियै, दियोर। जों तोहें केकरो नाम बतैय्ये दैलें ऐलो छौ, ते एकरा से की होतै, जिनगी भर वास्तें ऊ आदमी से घृणा पालते रहवै, आरो ई घृणा वैर से हासिले की होयवाला छै।” फेनु कटी टा मुस्कैते वैं बातों के बदलते कहले छेलै,
“ठिक्के, जॉर होथौं, चेहरा कुम्हलैलो हेनो लागे छै... अच्छा चलियौं, दियोर; बलजीत अकेले बाँधों पर गेलो छै, जो बीड़ी ओराय गेलो रहै, यही लें पाँच-छ मुट्ठा आरो पहुँचाय दियै।”
“कैन्हें ? अमरजीत?"
“ओकरा तें, कल्हे तगेपुर पहुँचाय ऐलियौं। यहाँ रहतियै, ते मार करतियै, मार खैतियै, आरो की। मंझला मामा कन रहतै, तें आरो कुछ हुऍ- नै हुए, पढ़ी-लिखी तें लेतै जरूरे। से कल विहानिये कामेसर दियोर से कहैलियै, बैलगाड़ी तैयार करों आरो हमरा जगदीशपुर लै चलो | कटियो टा ना-नुकूर नै करलकै, दियोर। दुपहरिया तांय वहाँ पहुँचलियै, अमर के फूल दा कन छोड़लियै, आरो बेरा डुबतें - डुबतें गाँव आवी गेलियौं। अच्छा, फुर्सत सें आरो बात करवौं, इखनी चलै छियौ, दियोर। बेर होलों जाय रहलो छै, वहू सोचते होते, माय केन्हें नी ऐली छ।” आरो सत्ती खेत के एकपैरिया रास्ता पकड़ी के बाँधों पर चढ़ी ऐलो छेलै, फेनु झब झब बॉर गाछ तांय पहुँची बाँधों से नीचे उतरी ऐलो छेलै। चेतु के आँख सत्ती के तब तांय पिछुऐते रहतै, जब तांय कि ऊ आँख से ओझल नै होय गेलों छेलै। ओकरों मॉन होय रहलों छेलै, कि ऊ भागलों-भागलों ओकरों लुग पहुँचै आरो गोड़ पकड़ी, भोक्कार पारी के कानी पड़े। जबे चेतु आपनों घोर दिस घुमलै, ते ठिक्के ओकरों देह-हाथ जोर सें तर्फे लागलों छेलै।