बराबर। वहू में कोन -जमाना के बचलों खुचलों बांस - कोरों एतें ठूंसलों कि एक खटिया बिछाय मान जग्घों मुश्किल से बनै पारें। आबें जों सत्ती बोदी सवा बीघा जमीन पर दावा करवे करै छै, तें अनुचिते की छै। भला वैद्यदा दाँत कथी लें गड़ैलें होलों छै। मानलियै कि वैद्य के खाय-पीयै के कीय आरो जरिया नै छै, एक वैदगिरी छोड़ी कें; मतुर आपनों परिवार पर छाया नाँखी तें छै नी, सत्ती बोदी पर ते कुछुवो नै; गाछी के तें की, लत्तियो के नै। हुनका तें देखिये के करैजों मूँ तक आवी जाय छै, मतुर तभियो देखों, ई जनानी के हियाव, भादो के बोहों के बीचों से फाड़तें मांसलों जाय रहलो छै। नै, हमरा से बड़का गलती भै गैलै कि अमर के जुआ से लगाय देलियै। अकीलें काम नै करलकै। मतुर आर्बे जे होय गेलै, से होय गेलै। हुनको गोड़ पकड़ी लेवै। हरजे की छै, अरे बोदियो तें मैय्ये दाखिल नी, फेनु बड़ी तें छेवे करै माय कभी बेटा के शापित करै छै! सब बात बताय देवै, तें सब पाप साफ।" यही सोची के चेतु आपनों डेग फेनु तेज करैवाला ही छेलै कि ओकरों नजर ओकरे दिस ऐतें सत्ती पर पड़ी गेलै। अभी ऊ कुछ बोलतियै कि एकरों पहिलें सत्तिये टोकी देलकै, "की दियोर, गाँव से बाहर छेलौ की? नजर नै आवै छेलौ। कोय कामों से बाँका आकि भागलपुर गेलो होलों छेल्हौ की ?” चेतूं एक दाफी ओकरों चेहरा के बड़ी गौर से देखलकै, कहीं मनों में कोय भाव छुपाय के आरो बात तें नै करी रहलो छै, आरो ई देखी कि कहीं कोय दूसरों बात नै छेलै, निश्चिन्त होय बोललै, "नै, नै बोदी, घरे पर छेलियै। मॉन-मिजाज ठीक नै बुझावै छेलै, देह-हाथ छकछकैलो हेनों लागे, बस यही लें बाहर नै निकलै छेलियै।
“अरे, तें केकरों हाथ खबर करी देतियौ।” "नै करलियै, तनी-मनी बातों वास्तें वैद्य के की परेशान करतियै।” "तें, हिन्हें कन्ने ? कोय काम छौं की ?” "बस, तोरे से मिलै वास्तें हिन्हें आवी गेलों छेलियै।” “से की ? बोलों।” “बोदी, आबें अमर के पीठी परकों घाव? असल में..." अभी चेतु कुछ आगू आरो बोलतियै कि सत्तीं पाँचो अंगुली के इशारा से मना करते कहलकै, “आबे ई सब बातों के उठैवों कोय मतलबे नै राखै छै, दियोर। कोय केकरो बारे में बतैवो करतै, तें हम्में विश्वास नै करें पारौं। जों हमरा