छै, ते छिपैलै सें की ? हेना कें तें हम्में आरो घुटते रहवों। एक दाफी बोली के ई बोझों से फारिगे होवों अच्छा, फेनु हम्में जानी के थोड़े मारले छियै। जुआ में बैल नै, अमरजीत छै, एकरों चेते नै रहलै, बस एतन्है टा तें भूल होलों छै, हमरा से। "
आरो एक दिन जखनी आशु बाबू पंचपुरा हटिया दिस जाय रहलों छेलै, चेतु पिछुऐते-पिछुऐ ऐलै आरो बाते-बाते में सब खोली के बताय देलकै, ई कहते कि, “आबे बड़की बोदी जे सजा दौ, सब स्वीकार।"
आशु बाबूं सब सुनी लेलें छेलै, एकदम चुपचाप, मतर बोललों छेलै कुछुओ नै। हटिया आवै के पहले हुनी एक गल्ली दिस मुड़ी गेलों छेलै; चेतु के वही ठां छोड़ी | चेतु के लागलै, ओकरों अपराध के माफी नै मिललै, अच्छा होते कि सत्ती बोदी के सब सुनाय दिये, आरो यही सोची के ऊ झब-झब पुबारी टोला दिस बढ़े लागलै, मतर बीचे में डेग कुछु हौल्कों करी लेलकै, ई सोची के कि जबे घरों के मुखिया के कहिये देलियै, तबें आबे आगू बात बढ़ला सॅ की फायदा | गढैया के पानी ज्यादा साफ करै के मतलबे छेकै, पानी के आरो कदोड़ करबों। अच्छा होते कि सत्ती बोदी वैद्यदा के मारफते जानी लै, फेनु जे कहना होतै, कहतै; गुम्मी साधी के सुनी लेना छै, आरो की।
कि तखनिये चेतु के मन में एकटा नया शंका भेड़ियाय उठलै, “ हुऍ सकै छै, वैद्यदा सत्ती बोदी के नहियो कहें। भीतरिया ते भेद-दुराव छेवै नी करै। भेद की चुल्हा-चौका के लैक थोड़े छै, ऊ ते एक घंटा में सलटी जायवाला छेकै। ई ते अलगे बात छेकै, जे हड़िया-पतलिये नै, एक्के ऐंगना दू-दू घोर करी देलें छै, बस सवा बीघा जमीन के चलते। वैद्य दां ऊ जमीनों पर आपनों दाँत गड़ैले होलों छै, आरो हिन्ने सत्ती बोदियो। आबे सही-सही केकरों हक बनै छै, ई के बतायें पारें। मतर हक-हूक से अलग हटी के देखलों जाय, तें वैद्य के की चाहियों ! अरे, आर्बे फूलदा ते नहिये छै, बची गेली बेचारी विधवा बोदी। मानी लेलियै, ई जमीन फूल दां आपनों छोटों भाय वैद्य दा के नामे से खरीदलें रहें, तखिनकों बात अलग छेलै, आरो इखिनों बात अलग है। तखनी लाल दा इस्कूली के मास्टर छेलै, जेहे टाका आवै छेलै, आवै तें छेलै, आबें तें नैकी बोदी के पास कुछुवो नै। एकटा ऐंगनों आरो दू कोठरी, यै पछियारी कोठरी ते जमीन्दारों के भुसखारी