तोरों तीनों बच्चा के शादिये-बीहा नै, सबभे के भरलों-भरलों गोदो देखी के जाय।"
नै जाने कर्ते-कर्ते बात सोच चल्लो गेलो छेलै, सत्ती। ध्यान टुटलै त - जबें आशु बाबू के खकसै के आवाज बड़का ऐंगन में होलै। ऊ झट सना देह- हाथ संभालते हुए ठाढ़ी भै गेलै। खड़ाऊँ के चट्-चट् के आवाजे साथै हुनी ऐंगना में, फेनु ऊ कोठरी में गेलों छेलै, जैमें अमरजीत छेलै। देखलकै, अमर उठी के बैठी चुकलों छेलै, फूलमती घाव पर जड़ी-बूटी से बनैला लेप के धीरे-धीरें अमरजीत के पीठी पर ससारी रहलो छेलै। सत्तीं चाहतौं कुछ नै पूछलकै, कि ई सब केना होलै, जेना वैं सब कुछ जानी लेलकै कोय अन्तरयामी रं। आशुओ बाबूं केकरौ से बेसी कुछ नै पूछले छेलै, खाली एतनै कहलकै, “आबे दरद केन्हों छौ बेटा?" आरो जबे अमर ने दरद नै होय के बात हौले से बतैलकै, ते सत्ती के लागलै; जेना ओकरों सबटा दरद हठासिये फुर्र होय गेलों छेलै।
(४)
ई घटना के लैकें सत्ती जत्तहै मौन होलों गेलों छेलै, ओहैं टोला सिनी में कानाफूसी बढ़लों गेलों छेलै। आखिर के मारले होते, हेनों क्रूर बनी कें? केकरों मोन हेनों कसाय हुऍ पारें ? आचरज ते ई छेलै कि आशु बाबुओ कुछ जानै के कोशिश नै करी रहलों छेलै। वृजनारायण घोष के बाते तबे कहाँ उठै छै। हेनों बात ते नहिये होते कि वृज बाबू के एकरों बारे में कुछ मालूमे नै होतै, एत्ते बड़ों बात होय गेलै, कोय छोटों-मोटों बात छेके की? मतुर आशु दादा कैन्हें चुप छै! शायत हुनका विश्वास रहे कि एक-नै-एक दिन पाप आपनों मुँह आपने खोली के बोलते। आरो होवो करलै वही। चेतु मिसिर के आय कै दिनों से यही लागी रहलों छेलै, कि आशु बाबू साथै बड़की बोदी के सब मालूम होय चुकलों छै, खाली हमरा से बोली नै रहलों छै। वैं मनेमन सोचलकै, "जबें जानिये लेलें