Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/19

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बेटी प्रातियो रुकी गेलों छेलै। कुहराम ते पहिले नै होलो छेलै नै आशु बाबू के निकलला के बादे होलै, अमरजीत के कुहरवों कुछ कम होलों छेलै, ते एकेक करी के आरो-आरो भी कोठरी से बाहर निकली ऐलों छेलै, बस बची गेलों छेलै, सत्ती, जे आपनों दोनों ठोरी के एक दूसरा से कसले खटिया के पासी पर बैठी गेलो छेलै, दोनों गोड़ के धरतिये से टिकैले।

अमरजीत के कखनी नीन आवी गेलै, ई ते सत्तियों के नै पता चललै, आरो नै पता चललै, ते एकरों कारण छेलै; ऊ एक बहुत बड़ों निर्णय लैमें डुबलो होलों छेलै, आपनों छाती पर चलते जाँतों राखी के। एक हेनों निर्णय, जे ओकरा अमर से अलग करी देतियै, मतर कोय किसिम से आपनों मनों के डिगै दै लें ऊ तैयार नै छेलै। वै फेनु से ऊ तस्वीर दिस देखलकै जे ठीक पनरों साल पहिले अमर के सत्ती के गोदी में छोड़ी के आपनों देह छोड़ी देलें छेलै। ओकरा लागलै, जेना शीशा के भीतर के फोटो ओकरा से बात करते रहें, “घबड़ाय छौ केन्हें, अमर के माय, ई बात तें तहूं जानै छौ कि हमरों बीहा यही शरतों पर होलों छेलै कि ससुर जीं हमरो पढ़ाय गछले छेलै, यानी जहाँ तक हमरों इच्छा होतै, हुनी वहाँ तक पढ़ते। मतुर होलै की? अनठियावों शुरू करी देलकै। यहाँ पढ़ाय लेली हमरा तीन दिन आमी गाछी पर बैठी के हुनका सिनी के परेशान करैले पड़लै, जबे तोरों लालदां पढ़ाय गछलकौं, तें नीचू उतरलो छेलियै। छोड़ो आबे ऊ सब बातों के, की याद करवों। आबें तें तोरों तीनो भाय मास्टर छौं। अमरजीत के कोय भाय के यहाँ छोड़ी आवों। हमरा नै पढ़ेलकौं, तँ नै, भैगने के पढ़ाय दौ, गछलों बात पूरा समझवै।' के >> सत्ती के दोनों ठोर हठासिये ढील पड़ी गेलो छेलै। वैं तस्वीर के बड़ी निरियासी के देखले छेलै, आरो अंचरा दोनों तरत्थी बीच राखी के मूड़ी नवाय ले छेलै | रात केना के करें कटी गेलों छेलै, ओकरा कुछ पती नै चललै; पता चललै तबें, जब आपनों ऐंगना में आशु बाबू के खकसवों सुनलकै। सत्तीं लम्बा घोघों खिंचलकै, आरी सीधे बाहर निकली ऐलै। बाहर ऐलै, तें ओकरा लागलै; जना ओकरों मनों के सब भार बाहर आवी गेलों रहें, शायत आशु बाबू के देखी के। आरो जब-जबें हुनका देखी के सत्ती के हेनों कुछ बुझावै, ते कखनू-नै-कखनू ऊ पूजाघरों में देर- देर तांय