खोज्ञावती पांचवीं पुतखी तुम्हें शोक हो तो इन घोड़ों में से किसी घोड़े पर चढ़ा करो।” * भेद तो इसे वहां का अश्लूम ही था, दूसरे दिन घोड़ा उसने वहां से मंगाया, और उस पर सवार हो वहीं फेरने लगा, रानी भी खुश होती थी, और राजा भी खुश होता था. इसो तरह कई दिन कितने घोड़ों पर सवार होता रहा, एक दिन उस घोड़ी को मंगावा और रानी के ज़कम से उस घोड़ी पर भी सवार जआ, रानी तो मफलत में रही, कि इस ने कोड़ा किया, घोड़ी मानिंद हवा के राजा को ले उड़ी, रानी और सखियां अचता पछता रह गई * राजा अंबावती नगरी में आन पहुंचा, वहां नही किनारे एक सिद्ध बैठा रेखा, राजा उत्तर दंडवत कर, उस पास जा बैठा, सिद्ध् का जब ध्यान खुला तब उसने इसे देखा देखकर खुश जआ, एक फूल की माला इसे दी, और कहा, ‘विजय माल मैं ने तुझे दी, इस का गुण यह है, कि वहां लावगा वहां फतह पावेगा, और तू खब को देखेगा, तुझे कोई न देखेगा।” * फिर एक बड़ी राजा को दी, और उसका ब्योरा भी समझा कर कहा कि, ‘‘ इस लकड़ी का यह खवास है, पहिले पहर रात को सोने का जड़ाऊ गहना जो इसे मांगोगे तो यह देगी; और दूसरे पहर रात को एक खूब सूरत नारी ऐसी देगी कि जिसे देख राजा तुम अाशिक हो जाओगे; और तीसरे पहर रात को जब इसे हाथ में खोगे, तो तुम सब को देखोगे और तुम्हे कोई न देखेगा; चौथे पहर रात को माजिद काल के यह हो जायगी, इस के डर से कोई दुशमन तुम्हारे पास न आ सकेगा।” * यह बात कह जोगी ने राजा को दखसत किया. राजा जब उजैन नगरी के