తి शोखावती पांचवीं पुतशी विक्रमाजीत यहां आवेगा, और उस से इस की शादी होवेगी. राजा को जो देखा तो फूलों की माला ले आईं और गंधर्व व्याह किवा. राजा जैसा दुख पाकर पहुंचा था वैखा वहां उसने सुख भोग, किया * अलम्र्ज वे दोनो आपुस में रहने लगे और नौजवाणी के ऐश करने, हर एक तरह का लुत्फ् उठाने लगे, सखियाँ भी खिदमत में हाज़िर थीं, और मानन्द चकोर के चांद सा राजा का मुंह देखती थीं * चन्द मुह्त राजा को इसी तरह गुज़री. अपने राज की कुछ सुध न रही थे बातें कह, लीलावती पुतली ने फिर कहा कि,” सुन राजा भोज ! जैसा राजा ने बख किया हैसा ही विधाता ने उसे सुख दिया, किसमत ने वुह तमाशा दिखाया, "फिर कहने लगी,” उन सखियों में एक सखी से राजा को बजत प्रीत ज्ञई और बुह राजा की दया विचार भेद वहां का कहने खमी **ऐ राजा ! तुम यहां आन फसे हो, जोते यहां से कभी न निकलोगे, तुम्हारा नाम सुनकर और तुम्हारे राज काज का ध्यान करके मुझ को रहम आता है, कयोंकि तुम ऐसे धर्मात्मा, दयादंत दाता, परोपकारी हो, यहां रहना तुम्हारा भला नहीं, लाखों आदमी तुम बिन दुख पाते होंगे” * उस की बात सुनकर राजा को ज्ञान जआ, राज का ध्यान आया, तब उसे पूछा, ‘यहां से जाने का भेद मुझे बताओ ?” बोली, ‘एक घोड़ी इस राजकन्या की घुड़साल में हैं, सो उदौ से अस्त तलक जा सकती है,” यह बात सुनकर दूसरे दिन राजा रानी को साथ लेकर टहलता जआ, अस्तबल में जा निकला घोड़ों को देखकर तअरीफ करने लगा. रानी बोली, ‘जी