१२४ चिचकला चौबीसवीं पुतली
वाक़िफ हो आ, और हमें जल्दी ख़बर दे * जब वह औ़रत अपने घर में गई, तब उस ने फिर कर देखा, और सिर खोल कर दिखाया, फिर छाती पर हाथ धर अपने मंदिर में गई और सेठ के बेटे ने भी अपनी छाती पर हाथ रक्खा. यह ख़बर हरकारे ने आ राजा की दी; राजा भी अपनी सभा में आकर बैठा और एक पंडित से पूछा कि कोई चिया चरिच हमें सुनाओ, कि हमारा जी सुचे को चाहता है; तब पंडित ने उत्तर दिया, कि महाराज ! मेरी तो क्या सामर्थ है जो मैं चिया चरिच आप के आगे कहूं चिया का चरिच और पुरुष का भाग विरह्मा भो गरीं जानता, आदमी की तो क्या क़ुदरत है, और यह देखे ही बन आवे, ज़बान से कहा नहीं जाता. यह बात पंडित से सुन राजा चुप हो रहा, और अपने जी में कहा, यह चरिच देखा चाहिये * इतने में शाम हो गई, राजा उठ मह़ल में गया, कुछ खा तुर्त ही बाहर निकख आचा, और उस हरकारे को बुलाकर कहा, कि तू इस बात का बौरा कुछ समझा है? उस ने जवाब दिया, कि महाराज ! कुछ मेरे जी में आया है, पर आप के आगे कहते झंका होती है, राजा ने कहा कि जो तू समझा है निडर होकर बयान कर, वह बोला महाराज! उने जो सिर खोल कर छाती पर हाथ रक्खा, सो उन्ने कहा जिस वह अंधेरी रात होगी, तब मैं तुझ से मिजूंगी, और उन्ने भी छाती पर हाथ रख जवाब दिया, कि अचछा. हास की समझ में वह कुछ आया है. राजा ने कहा तू तो सच समझा है, यही उन का मत़लब है, मैं ने भी बड़ी देर तखक घाट पर बैठ, उन्हों का मुद्दअ़ा मअ़जून