उसके आने की पाई पेशवा लेने को गए, और उससे ले आए, जो कोई आता था उन मिलकर शुभ कुशल पूछ कर बधाईयां दे जाता था ,घर में भी उसकी नौबत बजने लगी ,मंगलचर होने लगा* वह खबर राजा ने सुनी और एक प्रधान को भेज दीवान को बुलाया वह अंधकार लगाया. वह जाकर राजा के पांव पर गिर पड़ा,राजा ने उठा छाती से लगा, शुभ कुशल पूछी, और पूछा कहा २ तलक तो गया था, और कहाँ ठिकाना उसका कर आया? यह सुनते ही वे फूल जो लाया था भेंट किए ,और हाथ जोड़ कर कहने लगा, कि महाराज! एक अचंभे की बात है , जो मैं कहूँगा तो आप ना पतियाने देंगे. फिर राजा ने कहा कि जो तूने अचंभा देखा है, तो बयान कर ,तब वह बोला महाराज मैं यहां से चला हुआ एक जंगल में पहुंचा और वहां जाकर एक पहाड़ देखा उस पहाड़ पर जब मैं चढता तो और एक पहाड़ नजर आया इस तरह के पहाड़ लांग कर जब मैं आगे गया ,एक पहाड़ के तले एक सुंदर मंदिर देखा जब मैं उसके पास गया वो एक पेड़ पर एक तपस्वी पांव में जंजीर बांधे हुए उल्टा लटका हुआ नज़र पढ़ा मांस क्षम सब उसका दांत में सेट रहा और एक उस देह से जो लपकता है सो फूल बनकर बहता है और उसके नीचे देखा तो बीस तपस्वी आसन मारे जिस ध्यान में बैठे थे वो वहीं के वहीं रह गए हैं और जान एक में भी नहीं वह सुनकर राजा हंसा और मंत्री से कहा कि तू सुन मैं उसका विचार तुझसे कहता हूँ कि वह जो तू ने तपस्वी संकल में खटकता खटकता देखा वह तो मेरा देह है मैंने पूरी जन्म में ऐसी