Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/71

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छै, सत्तर बरस के होय गेलो छै, तें की। की माँगों में सुरका सिनूर आरो गोड़ों में लाल टेस रंग| खाली शर्बते पीवी के सबटा विद पुराय में लागलों छै, मजकि जरिये टा की मुँहों पर शिकन दिखी जाय। प्रातीये माय, माँटी के चुल्हा पर माँटी के बर्तन राखले छेलै, फिरु पाँची ऐभाती मिली के कड़ाही में उबटन के मसालो कुटले छेलै।

सत्ती ऐंगना में बिछलो खटिया पर बैठलों-बैठलों सबकुछ देखी रहलो छै, रही-रही के कुछ-कुछ बतैवो करी रहलों छै।

वैं देखै छै - उबटन के मसल्ला सिलपाटी से पीसलों जाय रहलो छै, ते एकदम सें विभोर होय जाय छै।

सरसों तेल में उबटन मिलाय के ऊ पीतलिया थाली पर राखी देलों गेलों छै आरो वही थाली में पाँच-पाँच सुपाड़ी, पान, मिठाय, साथें सिनूर, फूल, बेलपत्तर साथें, शिव-पार्वती रॉ मोर-पटवासी।

सत्ती के नजर चारो दिस टुकनी रं उड़ी रहलों छै। कभी नया चुल्हों पर लब्बों बर्तन में पुरहैत के खीर बनैवों, तें कुलदेवता के भोग लगैवों आरो जल्दिये ओकरों नजर मड़वा पर बैठली फूलमती पर जाय के ठहरी जाय छै, जेकरों आँखी के पांच ऐभातिन पान पत्ता से मुनलें होलै छेलै। कमली माय, साथै अझोला फूल के हाथों पर उबटन फेरी रहलों छेलै, आरो जेठानी शंख के फूकै मै बेहाल।

सत्ती के कानों में अठारों साल पहिलकों उलू उलू के ध्वनि गूंजी उठलै ते ओकरों आँख आपने आप बंद होय जाय छै। बीतलों बात घुरी-घुरी आवै छै - लाल पाड़ के साड़ी में ऊ लजौनी बनले दौलतपुर उतरली छेलै। ससुराली के आपनों घोर के आपनों ऐंगन ! जेठानिये विदकरनी बनली छेलै - ऐलता से गोड़ रंगलों, सुरका सिनूर आरो लाल-पीरों साड़ी में दगदग गोरी - लारों केन्हों शोभी रहलों छेलै।

सत्तीं एक-दू दाफी आपनों आँख झपकैलकै, जेना नींद के तोड़े के कोशिश करतें रहें। नजर घुमाय देखैलकै, की रं अमूल, अजय, अमरजीत, मडवा बनावै में संझकिये बेरा सें लगी गेलों छै, मड़वा के बीच में धान बिछैलो गेलो छै, जै पर जल से भरलों कलश, फेनु कलशों पर आमों के पल्लव,...

देर रात तांय जेठानी साथें गोतिया भरी के ऐभातिन गीत - नाद से