पाहुनगिरी।”
बासमती के ई बोलना छेलै कि सबभे एक्के साथ आपनों - आपनों मुँहों पर अँचरा राखी, ठठाय के हाँसी पड़लै।
(१६)
आय थुबड़ों छेकै, कल्हे बीहा के दिन। दू दिन से सत्ती के आँखी में पुरनका एक-एक दृश्य घूमी रहलों छै-अठारों साल पहिलकों आपने बीहा के दृश्य... केना लालदा काँशों रों जामों में डंडीवाला पाँच-पाँच पान, पाँच सुपाड़ी, छोहारा, काजू, किसमिस, नारियल, कागजी बादाम, चाँदी रो पान, चाँदिये रों सुपाड़ी आरो जैमें पाँच सिक्का राखले, एकरों साथे लड़का के पाटवस्त्र, लाल करधनी, दुल्हा- माय के साड़ी, धान-दुबड़ी साथें पिसलों हरदी, घी, पाँच प्रकार के मिठाय, पाँच प्रकार के फॉल लेले नाऊ-पुरहैत साधें यहाँ गाँव निकली गेलों छेलै; यही ऐंगना में केना छड़ौला लिखलों गेलों छेलै, जेकरा पर सिन्दूर के टिक्का, वही पर पिठाली से पोतलों कलश राखलों गेलों छेलै, कलश पर आमों के पल्लव, धूप-दीप। सत्ती आपनों होयवाला दुल्हा के देखले छेलै, जे पाटवस्त्र पिन्ही के वहीं पर आवी के बैठी गेलों छेलै आरो पंडी जी स्वास्ति पाठ करै में निमग्न।
वहा सब तें अभियो होय रहलों छै - आरो वहा रं फूलमती के बाहर निकलवों बंद होय गेलों छै।
आय तें धुबड़ों छेकै। वर पक्षों के ओरी से जे पाँच चित्ती कौड़ी आरो गिर्हो लागलों हरदी ऐलों है, ऊ हरदी के उपयोग आय उबटन लेली होतै। मतर ऐंगन भरी जनानी के नजर जों कहीं पर रही रही टिकी जाय छै, ते वैद्य आशु बाबू के पत्नी पर, यानी गाँव भरी लें बड़की काकी, बड़की माय, बड़की बोदी आरो सत्ती के गोतनी यानी प्राती - माय-लाल पाड़ के हरदियानों साड़ी में एत्ते फवी रहलों है कि मत पूछ। टोला भरी के अलग-अलग घरों के पाँचो ऐभाती में प्रातीये माय सबसे ज्यादा शोभी रहलों