सुर करी के कहले छेलै, “आबें खेत जोगियें टुनटुन, हम्में घोर चलै छियौं ।” आरो ऊ सत्ती के झोली आपनों हाथों में लै लेलें छेलै ।
“चलों बोदी; कर्ते दिन होय गेलै, तोरा से बातचीत करलें ।"
आरो दोनों कच्ची रास्ता पार करी के दौलतपुरवाला बाँध पकड़ी लेले छेलै । दोनो में से कोय्यो अकेली होतियै, ते एत्ते हौले-हौले नै चलतियै, मलकिये मलकी के चलतियै, मतुर इखनी दोनों के कदम एकदम रुकी रुकी के बढ़ी रहल छेलै । देवदासी एक्के साथ कर्ते-कर्ते बात पूछी लेलें छेलै आरो सत्ती एकेक करी के सब सियारतें कहले जाय रहलों छेलै, "हम्में की, फूल के शादी करें पारतियै देवी, वहू में नौकरीवाला; सब लालदा के करलो-धरों छेकौं। हों, दहेज के टाका ते हमरै जुटाना छेलै, लाल दा कहाँ से दिऍ पारतै । जहाज र परिवार के एक मास्टरी पर चलाय रहलो छै, वहू भागलपुरों हेनों शहरों में किराया के मकान लैकें | आपनों बच्चा-बुतरू के पढ़ाय-लिखाय साथें अमर के पढ़ाय तक हुनके बल्लों पर नी । तबें, देवी, तोरों दादाही तें सरंग से हमरों सुख-दुख देखिये रहलों छौं नी । हुनियो तें हमरा हर विपत्ति से उबारतें रहलो छै, आगुओ उबारहैं रहलात ।” आरो एतना बोली के ऊ भसमवाला गेठी आपनो माथा से लगाय के फेनु कान्हा से लटकाय लेलें छेलै ।
“बोदी, दहेज के बाद, आरो खर्चा तें होवे करतै । बीहा- शादी तें पहाड़ रं भारी होय छै, असकरे के उठावै पारेँ ! किसिन भगवान आदमी थोड़े होय छै । " देवदासी से सत्ती - घर के हालत छुपलों नै छेलै, यै लेली वैं ई पूछी बैठलों छेलै, जेकरा वैं बुराहो नै मानलें छेलै, आरो वहा रं सुस्तैलो आवाज में कहले छेलै, “गाँव में हेनों कोन टोला होतै, जेकरों लें अमर रॉ बाबूं आपनों जिनगी रहतै कुछ-कुछ करले नै होतै। आय हमरों घरों में यज्ञ होतै, ते की देही-समाँगों से कुछ नै करतै । टाका-पैसा, अनाज थोड़े माँगवै, ननद; ऊ ते जेना होतै, बारात; सिनी के हाथ धुलैवे करवै नी । "
ई बात कहते-कहतें सत्ती के गल्लों कुछ भारी होय गेलों छेलै, ते देवदासीं तुरत बातों के लोकतें कहले छेलै, "है की बोलै छौ, बोदी, तोरों घोरलेली तें सौंसे गाँव ठाढ़ों छै । भूलें पारै छै कि गुलाब दा के बाबां, बावा हैं नै, परबाबाहौं, जब तांय टोला के दस घरों के पूछी नै आवै कि खाना बनलों