आँखी आरो ओकरों कानों में एक-एक दृश्य, एक-एक आवाज उतरें लागलों छेलै...
"देखो, देखों, आस-पास झाड़ी में कुछ छै ते नै?" कोय बोललो छेलै । कि तखनिये आशु बाबू के नजर बालटी के पानी पर पड़लों छेलै। छरविन्न रं कोय करिया जमीठ कीड़ा पानी पर तैरवों करी रहलों छेलै। हुनकों चेहरा पर केन्हों भय आरो परेशानी हठासिये उभरी गेलै। की हुनी हौ क्रीड़ा के देख सब बात बूझी लेले छेलै आरो आपनो तीन बैटरीवाला टार्च लेले बँसबिट्टी दिस झब-झब निकली गेलों छेलै। लौटलै, तें कुछ लोत-पात लैकें| जल्दी-जल्दी पीसी-घसी के वहीं तरहत्थी पर लगाय देलें छेलै, जेकरा विनय होने डोलाय रहलों छेलै; जेना गुलेल से घायल कबूतर आपनों पखना फड़फड़ैर्ते रहें। लहर तें उतरी गेलो छेलै, मतुर विनय के चेहरा तें दिन-प्रतिदिन करियैले जाय रहलो छेलै, आरो ओकरों जिनगी लें सत्ती रोज मसूदन मंदिर में माथा टेकी आवै, ते कभियो मनारो के विष्णु मंदिर में माथा टेकी आवै, मतुर होलै की ? कुछुवो ते नै। विनय बचें नै पारलै। मतुर में भगवानों के की दोष ? दोष भैसुरो के कैन्हें देवै। हुनी ते विनय के देहों के विख दूर करै लें की- की नै कोशिश करलकै। ढेकी-माय के बोलै के की? ऊ तें कभियो कुछ बोली दिऍ पारें - मतुर हेन्है कथी लें बोलतै। जे हुए, ढेकी-माय जों ई कहै छै कि समय रहते जों दादा ई बोली देतियै कि विनय के भागलपुर लै जाना जरूरी छै, तें कातो बाबू से दिखाय देतियै। मतुर हुनी ते यही जिद पर रहलै - यहीं ठीक होय जैतै । कातो बाबू आरी अमूलो बाबू की करतै? मानलियै, कि हुनका दुनु कुछ नै करें पारतियै, मतुर दादाहै की करें पारलकै? अकारथ में विनय के प्राण चल्लों गेलै, घास-फूस के लेप लगाय-लगाय के की होलै! ढेकी-माय जब ई कहले छेलै कि पैमें हमरा ते कुछ आरी बात लागै छै, बड़का खर्च - आरो बड़का खर्चा; के मतलब छै, खेत-बारी बेचै के नौबत। शायत यही ले हुनी भागलपुर में इलाज के बात टारी देलें रहें .... तखनी ढेकी माय के बात टारी तें देलें छेलियै, मतुर हौ बात हमरों सीना से निकलें कहाँ पारलै, पोकोही रं मनो के कोना-कोना में फैलते रहलै । ऊ आबें छूटी ते गेलो छै, मतुर एकदम्में चोखाय गेलों रहें, यहू कहाँ छै । महीना भरी हमरों आंखी के लोर नै सुखलों छेलै, आरो एक दिन हेनों सुखलै, कि देहों के लहुओ तांय जेना सूखी गेलों रहें...