बराती लागौं, बचलों टाका लड़कावाला के देन्है छै, व्यवस्था छौ नी ?” पंचामृत बाबू कहलें छेलै।
“हों, दादा, सब वेवस्था करी रहलों छियै ।" सत्तियों लगले उत्तर दे छेलै।
“तें, तोरा बाकी के चिन्ता नै करना छै। हौ हम्में देखी लेवै। आरो बौआवें के समय्यो कहाँ रहलै, बस महीना भरी तोरों हाथों में रही गेलो छौ। घरों में आरो सब इंतजामो तें करना छौ; से आर्बे तोहें गाँव लौटी जो! सार्थो में अमर के भी राखी लें ! वहाँ गामों में असकल्ले सब इन्तजाम करवों तें मुश्किले छौ । फेनु अमर यहाँ रहिये के की करते । नामो लिखैतै, ते वै महीना भरी देर तें बुझवे करें। आरो हों, फूल यहीं रहतै, ऊ तोरों बोदिये साथें, पाँच रोज पहले गाँव पहुँचतौ । बुझलैं? बोदी लुग जिद नै करियैं | सुनै छियै, तोहें लाल बोदी से कही रहलों छेलैं- फूलों के साथ लै जाय के बात । ई बात दिमागों से हटाय दें, आरी अमर के लैकें तोहें दौलतपुर लौटी जो ।”
सत्ती कुछुओ जवाब नै देलें छेलै । लालदा के हर बात जेना देवता के आदेश रहे, जे कुछ, केन्हों के टारलों नै जावें सकै छेलै । ऊ होन्हौ के नै बोलें पारै छै, जखनी वैं बड़ों दा से आपनों लेली स्वाति नाम सुनै छै । एक लाल दा ही कभियो ओकरा सत्ती कहीकें नै पुकारले छै, बाबुए नाँखी स्वाति कहलें ऐलों छै नै तें नैहर के सभै ते बस वहा सत्तिये, जे नाम ओकरों ससुराल वालाहौं जानी लेलें छै।
सत्ती के मालूम छै कि पंचामृत बाबू कॉन सोभाव के आदमी छै। आपनों आपने छेकै, दोसरों लें हुनको मॉन होने छलछलैते रहै छै। हौ दिन नै जानौं कौन बातों के लैक सत्ती के आँख, हुनको सम्मुख लोराय गेलै, ते पंचामृत बाबूं कहले छेलै, "स्वाति, जबें घोर दुक्खों के दिन छेलौ, तखनी तें आँख आरो मॉन के बांधले राखलैं, आरो आबें, जबें सुख तोरों दुआरी पर खाड़ों होय के झिंझरी ढकढकाय रहलों छौ, तें हौ आवाज नै सुनी, आँखी के दुआर खोलै लें बैठी गेले। इखनी ते कुछ निश्चिन्त होय के नै बोलें पारौं, मतुर खुशखबरी जल्दिये सुनें पारें कि अमरजीत के सरकारी नौकरी मिली गेलों छै - रेल के नौकरी, बहू में एकरा कीय हेन्हों - तेन्हों पद नै मिलै वाला छै। परीक्षा में लिखवी करलें छै बढ़िया, बोलवो करलें छै बढ़िया । तबें, जब