फसल।"
" की बोललकै कंकड़िया के कनियैनी, जरा दोहरावैं तें!"
अजनसिया के समझे में देर नै लागलों छेलै कि फसलवाला बात सुनहैं आशु बाबू के हेनों लागलों छेलै, जेना हुनका कोय बिरनी काटी लेलें रहें । मतुर वैं कुछ आरो नै पूछी के कंकड़िया- कैनयैनी के बात दोहराय देलें छेलै, आरो एक क्षण चुप रहला के बाद आशु बाबू से पूछले छेलै, "है पैंचों लेवों-लौटैवोंवाला बात हम्मे नै समझें पारलियै, दादा, आबे जबें कि सत्ती बोदी चतुरानन चाचा के हाथ आपनों खेत बेचिये देलें छै, जेन्हों कि धनुकायन चाची के बातों से बूझें पारलियै, ते हुनी कोन खेत के कॉन फसल दै के बात करी रहलों छेलै ?"
आशु बाबूं, अजनसिया के एक-एक बात के बड़ी धियानों से सुनलें छेलै, मतुर बोललों छेलै कुछुवे नै। सबकुछ सुनला के बाद कुछ देरी लें एकदम सीधा होय के बैठी गेलों छेलै, आँख मूंदी के । ई देखी के अजनसियौं हुनका नै टोकले छेलै। कि तखनिये वैं देखलकै कि आशु बाबूं झोली के जे अभी तांय हुनकों कंधे से लटकी रहलों छेलै - उतारी के टेबुल पर राखी देलकै, आरो वैसे एक पुड़िया में लपटैलों, एक अंगुरी के बराबर कोय चीज अजनसिया के थमाय देलकै, जेकरा पैथें, वैं कहले छेलै, "तें चलियौं, बड़ों दा, बेरा डुबला से हमरों परेशानी बुझवे करै छो।” आरो ई कही ऊ सीधे देहरी सें नीचें ससरी गेलों छेलै।
मतुर आशु बाबूं उत्तर में कुछुवा नै कहले छेलै, जेकरा पर अजनसियां ध्यानो नै देलें छेलै, जेना ओकरा आशु बाबू के उत्तर के कीय जरूरतों नै रहें । देहरी से उतरला के बाद ऊ दू-तीन दाफी चुटकी बजै हुऍ पछियारी टोलों दिस बढ़ी गेलों छेलै।
(१६)
" सुनें स्वाति, आबें सब कुछ तै तमन्ना होय गेलों छै । दुआर पर