Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/42

From Wikisource
Jump to navigation Jump to search
This page has been proofread.

छेलै, "ननद, ऊ ते हम्मे हेन्है कही देलें छेलियौं, तोरों दादाही यही चाहै छै कि के शादी तोरों ससुरारिये घरों से होते आरो काँही से नै । जे गाँवों में फूल खेललै, कूदलै, ते ओकरों बीहा आन जग्घों से भला केना हुऍ पारें । चलों उठों, तोरों दादा के लौटै के बेरो होय चलल छौं । गोड़-हाथ, कपड़ा बदली ला ! आय तोंही तुलसीचौरा पर साँझ दिखाय दी। हम्में घरों में जरा झाडू लगाय दै छियौं ।”

ई कही अनुकंपा जेन्है उठलों छेलै कि सत्तियो चटाय के गोल करी एक कोना से खाड़ों करी देलें छेलै आरो ऐंगना के उत्तरी कोना पर बनलों कुइयां दिस बढ़ी गेलै ।

१०)

बीस रोजों के बाद सत्ती आपनों गाँव लौटै वाली छै । क हुलास मनों में लेलें, ई बताना मुश्किल । ओकरों खुशी के कारण खाली यही नै छेलै कि फूल के बीहा एक किसिम से पक्की होय गेलों छेलै, पक्किये नै, बीहा के महीना - तारीखो तक होय गेलों छेलै । आर्बे टाकाहै दे में जों देर-सबेर होला के कारण बीहा के दिन आगू बढ़ी जाय, ते ई अलग बात है, नै ते बैशाख में जे दिन तारीख पड़लों छै, ओकरों टरै के कोय बाते नै छै ।

ई तें खुशी के एक बात छेलै; दूसरों खुशी यैले छेलै कि अमरजीत मैट्रिक पास करी गेलों छेलै । पासो की हेन्हों- तेन्हों, एकदम फस्ट क्लास सें । ऊ यही रिजल्ट जानै ले लाल दा के कहला पर वहाँ पाँच दिन बेसिये ठहरी गेलों छेलै, आरो जखनी अमरजीत के ई रं पास करै के बात ओकरा लाल दां सुनैले छेलै, तें ओकरों आँखों से लोर ढरकी ऐलों छेलै ।

लाल दां कुछुवो नै कहले छेलै । बस चुपचाप वहाँ से हटी गेलों छेलै । लोर निकली आवै के कारण तें वैं अपनी लाल बोदी के बतैनें छेलै कि आय अमरजीत के बाबू होतियै, तें कत्ते खुश होतियै । यहें पढ़े के इच्छा लेली तें हुनी कै दिन गाछी पर चढ़ी के बैठी रहलों छेलै । आय हुनी देखतियै