मनझमान पड़ी गेलों छेलै ।
"सुनों ननद, मॉन नै गिरावों | दादा पीठी पर छौं नी । सब ठीक होय जैतै ।”
“जों घरो के सामनावाला बारी बिकी जाय, ते सब समस्या के निदान है। मतुर वहू की हेनै बिकी जैतै ? सबकें मालूम छै कि ऊ जमीनों में कुछु पेंच छै, जेकरा सलटैलें बिना, कोय खरीददार तैयारो ते नै हुऍ पारें । एक कुशवाहा दियोर छोत, मतुर हुनियो टाका के आठे आना दै लें तैयार । कहै छोत, “भैयारीवाला दाव-पेंच में हम्में एकरा से बेसी टाका नै फँसावें पारौं। ई जमीनों पर केसा- केसी तें धरले छै, वहू में तें हमरै खरच करना है। आबे तोंही बोलों बोदी, ऊ जमीनों से टाका आवै के भरोसे कहाँ बचै छै ।” सत्तीं आपनो लट्टों के फेनु से कोकड़ी दिस करते हुए कहले छेलै ।
“कहै छियौं नी, तोरों पीठी पर दादा छौं तें। जों कुशवाहा जी नै देतौं, तें कोय पाठक जी देतौं, नै पाठक जी, तें कोय यादव जी, मतर ऊ जमीनी बिकतै, आरो ठीक समय पर बिकतै, बाकी खर्च लें भाय सिनी कोन दिनों वास्तें छै।” एतना कहीं के अनुकंपा चुप होय गेलो छेलै । सत्ती तें चुप छेवे करलै ।
“की कुछु मनों में आरो भाव छौं, कुछ छौं, तें खखसी के बहू बोलों । कोय भांगटों बुझावै छौं, तें ओकरों निदान हुऍ पारें । कहीं तोरा है ते नै लागै छौ कि दौलतपुरों में शादी करना ठीक नै होते, कहीं ठीक बीहे वक्ती कोई भांगटों नै लागी जाय। तें, सुनों ननद, फूलवती के बीहा भागलपुरे सें होते। वहू लें हम्मे तोरों दादा के तैयार करी लेवौं ?”
" है की बोलै छौ, बोदी !" हठासिये सत्ती के बंद मुँह खुली पड़लों छेलै । हुनको मनों के साध के हम्में चोट केना पहुँचायें पारौं । हुनी जब फूल के गोदी में लै, ते एक्के बात बोलै, धूम-धाम से हम्में आपनों बेटी के डोली विदा करवै, सौंसे गाँव के सवासिन के जमा करी कें, सब सुहागिन के बीच । आबे तोंही कहों, बोदी, हुनी नै रहलै, तें की, हुनको किंठातें जीत्तों है, भले हमरों मनो॑ों में बसी के ।" कहते-कहते ओकरों आँख लीराय गेलों छेलै, जेकरा वैं आपनों अंचरा से पोछी लेलें छेलै ।
अनुकंपा के की मालूम छेलै कि ओकरों बात संझलकी ननद के हेना विचलित करी देतै । बात के गंभीरता के समझते हुए वैं फेनु से कहले