फूलमती के बीहा ते तै होय जाय । की बूझे छौ, बेटी रॉ रिश्ता कादों में बीहन फेकवों छेकै कि हिन्हें से बीया डालों आरो हुन्ने से पत्ता लेले गाछ बाहर निकली जाय। ई बीहा छेकै, आरी गरीबों के बेटी के बीहा; सौ तितम्बा, सौ झमेला; माय-बाप के नांगटों करी के छोड़े छै, बेटी के बीहा । कोनो ड्योढ़ी परिवार के बेटी के ते बीहा छेकै नै ।”
"तोरा है बात के बोललकौं, कि अमर के मामा फूलमती के बीहा उपरामा में लगाय रहलो छै?”
“बोमाँए एक दिन बोली रहलो छेलै ।”
“तोरा बोलै के मतलब?”
“आर्बे है बात जनानी जनानी के नै बोलते, तें की तोरा सें बोलतौं । होना के ई बात तोरहौ से बोलें पारे छेलै, आबे नै बोललकै, तें कुछ सोचल्है होतै ।” कि तखनिये टुन्नू-माय के नजर पछियारी दिवारी पर पड़लों छेलै, हड़बड़े ऊ बोली उठलै, “अगे माय, बेरा डूबै पर छै, एकरों ते पतो नै लगलै । फटकी के पीसनौ छै। घरों में चुटकियो भर चिकसों नै छै । खाना की बनतै ।” आरो ऊ पहिलके जग्घा पर बैठी के अन्न जल्दी-जल्दी डोकें लागलों छेलै, पटर, पटर, पटर, फट, पटर...
आशु बाबू चुपचाप औसारा पर लौटी ऐलो छेलै ।
(८)
सकीचन के आदमी रों मॉन के बड्डी पकड़ छै । के आदमी कत्ते दुखी छै कि नै छै, दुखी छे, तें कत्ते दुखी छै; खुशी छै, तें कर्ते भीतरिया छै, कत्ते बनावटी; सब बात वैं कोय्यो आदमी के चेहरा देखहैं भाँपी लै छै । तें आशु बाबू के ओसरा पर गुमसुम बैठलों देखहैं, जैतें - जैतें रुकी गेलै, आरो आपनों गोड़ हुनके दुआर दिस बढ़ाय देलकै । | बरण्डा के नगीच ऐहैं रुकतें कहलकै, "की बड़का दा, मनझमान देखे छियौं ?”