Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/35

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कि छोटकी के आपनों बेटा-बेटी ले भाय-भाय के दुआरी पर माथ टेकैलें लागै छै । फेनु सबके ते आपनों-आपनों दुख छै । के केकरों दुख बेसी दिन तांय ढोवें पारें । हौ तें उपरामा वाला मास्टर भाय है कि बेटा के पढ़ाय वास्तें आपन्है कन राखी लेलें छै । हुनके माथों पर फूलमती के शादियों के भार बूझों। सुनै छियै, एक दिन हमरा बतैलें छेलै, कि उपरामाहै के लड़का छेकै, पढ़लों-लिखलों तें छेवे करै, सुनै छियै सरकारी नौकरियों में छै । जो है बात सही छै, ते आबे आरी की चाहियों, मतर बीहा होन्है के तें नहिये नी होय जायवाला छै। मानी लें, गाँव भरी के नहिये बोलाय छै, तहियो गोतिये-टोला भर ! यहू में तें पाँच हजार से कम नहिये, बूझों। फेनु लड़कावाला सिनी की हेनै मानी लेतै ? कम्मो-से-कम पाँच हजार दहेजों में बूझों, जो लड़की के खाली एक्के साड़ी पिन्हाय के भेजी दै छौ, तें। फेनु एक्के साड़ी पिन्हाय के केना भेजवौ ! खानदानी के इज्जती तें देखना छै। सब पुराय वास्तें एक्के रास्ता बची जाय छै कि सम्पत्ति के नामों पर धरलों आगू के जमीनों के बेची देलों जाय । भले ओकरा से आधों साल के खाय- पीयै के कुछ निकली जैतें रहें ।" टुन्नू-माय नें ई सब बात एक्के सांस में कही देलें छेलै

" है तोहें बोली रहलो छौ, टुन्नू के माय कि... "

“बोलौं कि नै बोलौं, आबे तोंही बोलों कि पेटों लेली की बेटी के कुमारिये घरों में राखलों जैतै, आरो फेनु यही लें कल आपने लोग, जे-जे रं बोलतौं नी कि लागथ कानों में गलैलों शीशा कोय ढारतें रहें । बस मौका पावै के देर बुझों, रोइयां तांय भालो नाँखी गड़ें लागथौं ।”

“से तें ठिक्के बोलै छों, प्राती के माय । मतर मानी लें, ई बीहा होय्ये गेलै, खेत-पतार बिकियो गेले, तें बाद में की होतै । अमर के बड़का मामा ओकरा जिनगी भर नहिये नी राखी लेतै । तबें बोमाँ के पास खाय-पीयै के साधन की रही जैतै? बीड़ी बनैला से कहीं जिनगी कटैवाला छै? एखनी ई जमीन छै, ते कुछ आशाही छै, कुछ ओर-फेर करी के काम चलैय्ये लै छै ।”

आशु बाबू के बात सुनी के टुन्नू-माय एकदम चुप होय गेलै । कुछ देर सोच रहला के बाद हौले से बोललै, “आबे की होत्है, एकरों बारे में अभिये सॅ की सोचना छै। भगवाने एक मुँह देलें छै, तेंदू हाथो देलें छै । फेनु ई दुनियाँ में के भुखलों रहलों छै । चिड़ियौ अपना ले दाना खोजी लै छै, वहूं घोसला के बच्चा पाली-पोसी लै छै । आदमी ते आदमिये छेकै । पहिले