बेमत्त, जना बौंसी के संकराती में जाय लें सौंसे इलाकाहै उथल-पुथल सत्ती के कड़ा पहरा छेलै कि अमर नाटक देखै ले नै जैतै, उतरवारी कोठरी में आवी के झाँकलकै; नै, ऊ तें होन्है करवट मारी सुतलों छै, जेना सुतलों छेलै। अमरजीत के मालूम छेलै कि एकरों बाद माय आवैवाली नै छै, से ऊ हौले-हौले उठलै आरो पूवारी दीवारी से निकललो बाँसों पर गोड़ राखी, परछत्ती पार करी गेलै; पीछू छौरों के ढेर छेलै, से कूदै से कोय आवाजे नै होयवाला छेलै। हों, कूदै में देह-हाथ राख में लपटाय गेलों छेलै, मतर ओकरों फिकिर करले बिना ऊ सीधे नद्दी दिस सोझियाय गेलै। सब तें निकली गेलों छेलै, चेतु मिसिर के बैलगाड़िये बची गेलों छेलै, जे हिन्न लटकलों होलों छेलै। असल में बैलगाड़ी के एक बैल केन्हों के बालू में गिरी पड़लों छेलै, आरो गिरलै ते उठै के नामे नै लै छेलै। आबे चेतु के नजर अमरजीत पर पड़लै, तें आरो सब बात सोचवों छोड़ी के सीधे बोली पड़लै, "अरे अमरू, तोहें यहाँ, तोरों माय तें नाटक में जाय ले मना करले छेलौ। अच्छा, इच्छे छौ, तें चल एक काम करें, गाड़ी से उतरी के सब तें चल्लों गेलै, बाकी बची ऐलों छी हम्में, आरी नाटक देखै लें हमरौ तें जान्है है। एक काम करें, जबे ई बैलें धोखाहै दै देलकै, तें तोहीं जुआ उठाय ले। खींचवें तोहें थोड़े, खीचते ते ई जुआ से लागलों बैलें, तोहें खाली साहले रखियैं, आरो तोहें निचिंत रहें, हमें ई बात तोरों माय से कभियो नै कहभौ कि तोहें नाटक देखै लें भागी के ऐलों हैं, जे तोरों धराने बताय रहलों छौ।” चेतु मिसिरें भले नै बतैलें रहें, मतरकि यहू सब बात दबैला से दबैवाला छेलै ? छिपलै, तें बस दुए दिन। तेसरे दिन तें बात खुली गेलै, जखनी नीनों में अमरजीतें कुहरवों शुरू करलें छेलै। सत्ती के शुरू-शुरू में ते कुछ समझ में नै ऐलै, मतर वैं अमर के बिना जगैनें ओकरों देह-हाथ पर नजर दौड़ाना शुरू करलकै, कमीज उघारी के छाती गर्दन देखलकै, कांहीं कोय चोट-घांट तें नै लागलों छै। काँही कोय-चोट के निशानो नै छेलै, तें कुर्रहै छै कैन्हें? वैं फेनु से कमीज उठाय के पीठ देखलकै, ते ओकरों छाती फटी के रही गेलै, पीठी पर बित्ता भरी के चमड़ी फूली के कारों भै गेलो छेलै, जेना चमड़ी के भीतर कोय खरीस साँप के बच्चा घुसी गेलों रहें। वैं पासी पर से गोड़ उतारले छेलै आरों अँचरा के दोनो तरत्थी सें