ले, आरो ओकरों बाद सोचें कि अमर के मंडली में राखै लें चाहे हैं, की नैं ?” बदरी ने ई बात शान्तिये भाव से कहले छेलै।
बात सचमुचे में चिन्तित करैवाला छेलै। कमरथुआ बम में अमर के शामिल करै के नाम पर जोन रँ बवंडर महीना भरी पहिले गाँव में उठी चुकलों छेलै, ओकरा देखतें आबें केकरौ हियाव नै रहलों छेलै कि अमरजीत के मंडली में शामिल करलों जाय। के मुसीबत मोल लें।
“एतन्है नै, एक बात तें हम्मे कहै लें भूलिये गेला। कल सत्ती बोदी कन गेलों छेलियै; साफ कहियौ, सेर भरी चौर देतें नैकी बोदी की कहलकै ? कहलकै, 'सकीचन जी, आरो एक बात कि अमरजीत के तोरासिनी उड़ारी-पुड़ारी के नै लै गेलों करों। तोरा सिनी के जे नाटक - नौटंकी करना छौं, करो; अमर वैमें पाट-ऊट नै लेतौं; नै ते ओकरा उकसैलों करों। हों।" | "सब बात ठीक छै, नै बदरी के हम्में गलत कहें पारौं, आरो नै तें बोदी के ही। बमवाला घटना लै के हुनको मॉन एतन्है नी दहली गेलो छै कि हुनी कुछुवो नै सोचें पारें। मतरकि बात एकरों नै छै, बात तें यहाँ एकरों छै कि मानी लें अमर के मंडली में नै राखै छियै, नै सत्ती बोदिये ओकरा यहाँ आवें दै छै, ते राम के पाठ के करते। मंगलिया ? की गुलगुलियां ?” कपिल नें बड़का विपद दिस संकेत करतें, हाथों पर गाल धरी चुप होय गेलों छेलै। “फिकिर नै करें कपिल, सिद्धीनाथ के शामिल करी लेना छै । कम नै बूझैं, ओकरा | बस उन्नीस-बीस के अन्तर पड़तै, मतरकि रामलीला ते नै रुकतै।” निदान के मुद्रा में सकीचन ने मुड़ी हिलैनें छेलै।
“सिधियाँ राम रॉ पाठ करतै, ही, ही, ही, ही...." कपिल के जना गुदगुदी लगी गेलों रहें, “ई तें यह भेलौ, कि जन्मे से भुसगोल साधुनाथ से संस्कृत पाठ करैवों । हा, हा, हा, हा, "
सिद्धिनाथ साधुनाथ के बड़का भाय छेकै, जो साधुनाथ केकरी माल पचैयो के साधुवे बनलो रहला में माहिर छै, तें सिद्धिनाथ के केकरौ उल्लू बनाय में सिद्धि हासिल छै। पता नै, ई नाम के धरनें छेलै। ओकरों माय-बाबू से पूछला पर यह पता चललै कि दोनों के नाम चमरू, जमरू छेलै। जामों बच्चा छेकै, बस मिनिट के अन्तर लैके जनमलों छेलै दोनो भाय। रंग-रूप से दोनो के एक्के रंग-रूप, बोली- चाली में जरियो टा फरक नै। यही से गाँव में कोय सिद्धि के बुलावै, तें साधुवे जाय के काम कराय आवै,