User:S niveditha

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मैं निवेदिता तनुजा सुब्रमाणि का पुत्रि हुँ। मेरा जन्म ५ नवेम्बर १९९७ बेंगलूरु में हुआ था। हमारा बहुत बडा परिवार था,मेरी दादी,ताऊजी,ताईजी,मेरे भाई-बेहन सब एक साथ खुशियो से भरा हुआ सुखि परिवार था। सबसे छोटि और प्यारी होने के कारण में सबकी लाडली थी। मेरी छोटि बेहन के जन्म के बाद मेरे पापा की तरकी हुई और हमे मैसुर रोड का घर छोडकर हमे हि ए लि के क्वार्ट्स में आना पडा उसके बाद सब ने मिलकर उस मैसुर रोड वाले घार को बेज कर सबने अपना अपना घर बसा लिया, हमरि दादी हमारे साथ मे रहि। यहाँ इस नये घर में मेरा बचपन शुरु हुआ। यहाँ पर मेरी पेहली प्राथमिक शिक्षा हि ए लि पब्लिक स्कुल में शुरु हुआ सि बि ए सि होने के कारण मै ठिक से पडती नहीं थी अक्सर कम अंक लाया करती थी। इसके साथ साथ बहुत शरारत लडकि थी रोज़ कुछ ना कुछ गड-बड करती थी और मार खाति थी। मेरे सारे लडके दोस्त थे मै लडकियों के साथ कम खेला करती थी,मुझे उन लोगो के साथ खाना बनाना,घर-घर खेलना बहुत पसंद थी। छुटियो मैं आम के पेड को पथर मारकर अक्सर पडोसीयो से डाँट खाती थी। शाम के समय क्रिकेट लड्को के साथ खेलती थी और खेलते समय घार और गाडियो कि जाँच तोड देती थी और मेरे पापा से मार खाया करती थि,एसे हि खुबसुरात रहा मेरा बचपन। अचानक पापा ने एक दिन कहा हमे ये क्वार्ट्स छोडकर हमे केंगेरी में बनाये हुए नये घर मे जाना पडेगा, वहाँ उस घर को छोडकर यहाँ केंगेरी आने का मन बिलकुल नहीं था पर आना पडा। यहाँ मेरा कोई दोस्त नहीं था मै मेरी बेहन और एक श्रिया नामक लडकि थी बस हम तीन लोग हि खेला करते थे। यहाँ मैं एस जे आर केंगेरी पब्लिक सकुल में बाकी कि पडाई पुरी कि, इस स्कुल ने मेरा ज़िदागी बदल दिया, यहाँ आने के बाद मै कक्षा मे प्रथम आया करती थी। मेरे बहुत सारे दोस्त बने उनके साथ बिताया गया हर एक दिन बहुत सुनेरी यादो को छोड गयी आज भी याद करती हु तो आँखो में पानी भर आती है। उसके बाद आया हमरा दसवी कक्षा २१ लोगो से भरा हुआ एक प्यारा सा कक्षा वहाँ मेरे ज़िदागी कि सबसे अच्छि दोस्ते-पवित्रा पवान और अर्पिता मिले ये तीनो मेरे ज़िदगी का सब कुछ है। एसे खेलते खेलते हमरी स्कुल कत्म हो गयी हमे पदवि पुर्ण शिक्षा के लिये दुर होना पडा पर साल में एक बार ज़रुर मिलते थे। मैने आगे की पडायी आर एन एस कालेज मे की यहाँ पर बिताया दो साल मे मेने दोस्तो के साथ कूब मस्ती की, बंक करके सारे फिल्म देखे, दोस्तो के साथ जगह जगह घूमा बहुत सारे मज़े किया, बहुत सारे नये दोस्त बनाये। ये सब करते करते पता ही नहीं चला कि दो साल कब कत्म हो गया। मैने पि यु सी के बाद डांक्टर बनना चाहा पर विधाता कुछ और चाहता और मुझे डांक्टर सीट नहीं मिली और मै इंजीनियर मै बनना नहीं चाहती थी और मेरे मनज़िल को डुँडते डुँडते यहाँ क्रैस्ट विश्वविद्धयाल मे आ गयी यहाँ मुझे लगता है कि शायद मै यहाँ पडकर अपनी को क्रुतर्थ कर सकती हुँ। यहाँ का वतावरण मुझे खुशी देती है और यहाँ मेरे सारे दोस्त बहुत अच्छे है हर पल कुध खुश रेहते है और खुशियाँ फेलाते है।यहाँ के ग्रीन आर्मी जैसे कार्यक्रम मुझे प्रेरित करते है और मुझे लगता है कि शायद यहाँ मुझे मेरी ज़िदगी का मतलब मिलेगा और मै अपने मता पिता को ज़िदगी मे कुछ बना दिखाकर् उनका सर गर्व से ऊँचा करना चाहती हुँ। इन सबसे पेहले जीवन का हार खुशी हाँसिल करना चाहती हुँ और भारत का एक ज़िम्मेदार नागरिक बनकर देश की सेवा करना चाहती हुँ।