Page:Singhasan Battisi.pdf/71

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 कामोदी सातवीं पुतली

क्या रोती है? उस्ने जवाब दिया, कि मुझे यह थोड़ी बहुत ही बड़ी है,” तब राजा बोला, ‘मेरे कांधे पर चढ़ कर उसे खिला दे. वुह कंकालिन राजा के कांधे पर चढ़ी, उस सूखी पर चढ़, चोर जो टंगा था उसे खाने लगी, रक्त मुंह से उसके राजा के बदन पर गिरने लगा. राजा मन में सोचा, कि यह कोई और है, और इसने मुझे धोखा दिया, अपने जी में राजा ने यह सोच कर पूछा, "कह सुन्दरी तेरा पिया भोजन करता है कि नहीं?" तब कंकालिन बोली दय से खाचुका, अब इस का पेट भरा, मुझे कांधे से नीचे उतार * जब हेठल उतरी राजा ने कहा, "उस ने चाह के खाया?” तब कंकालिन हंस कर बोली, “तू मांग जो तुझे चाहिये, मैं तुझ से बहुत ख़ुश हुई, मैं कंकालिन हूं, तू मुझ से अपने जी में मत डर: वुह बोला, “में तुझ से क्या डरूंगा, और क्या मांगूंगा, तू ने तो मुर्द: मेरे कांधे चढ़ के खाया, तू मुझे क्या देगी?” वुह फिर बोली कि राजा तू इस खियाल में मत पड़, कि मैं ने क्या किया, और क्या न किया, जो तुझे इच्छा है सो तू मुझ से मांग ले • राजा ने हंस कर कहा, “अन्नपूर्ना मुझे दे, और जग में जस ले. वुह बोली, अन्नपूर्ना मेरी छोटी बहिन है,तू मेरे साथ चल, मैं तुझे दूंगी.” इस तरह आपुस में दोनों वहां से वचन कर चले, आगे२ कंकालिन और पीछे२ राजा, नदी किनारे जा पहुंचे. वहां एक मन्दिर था, उसके द्वारे कंकालिन ने ताली मारी, और अन्नपूर्नी ने प्रगट होके उससे कहा कि, “यह भूपाल कौन है?” वुह बोली, “यह राजा बिक्रम है, इस ने मेरी सेवा की है, और मैं ने इसे वचन हारा है,