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जैखची पश्चसवीं पुतली
और आप राज काज करने लगा * इतनी बात कह पुतली समझाने खगो, कि सुन राजा भोज ! तू बड़ा पंडित है, पर इस आसन पर वह बैठेगा जो बिक्रम खमान होगा.” वह खात्रात भी गुज़र् गई, राजा उठ कर वहाँ से अपने मकान में गया, रात की दूसी सोच में सो रहा, दूसरे दिन सुब को फिर सिंहासन के पाय आकर खड्रा तब*
* जैलची पचसवीं पुतली बोली *
"सुन राजा ! एक दिन की बात, मैं तेरे आगे कहती हूं. एक भाट निपट दलिद्री खराब हुाख था, सब पृथिवी के राजाओं के पास फिर आया था, और एक कौड़ी का किसी से उसने फायद: न पाया था, जब अपने घर में आया, तो देखा, कि बेटी जवान ब्याहने के लायक हुई है, यह अपने जी में चिंताहो करता था, कि उसकी भाटन बोल उठी, तमाम देस तुभ फिर आये, पर जो कमाई कर खाये, सी कही; तब उसने जवाब दिया कि मेरी प्रालबध में धन नहीं है, इस लिये, कि तमाम राजाओं के पास मैं गया, और शिष्टाचार उन्हों ने सब किया, पर एक दाम न हाथ आया, अब मेरे जी में एक बात आई है, राजा बोरबिक्रमाजीत बाकी रह गया है, उसके पास भी जाकर मांगूं, जो मेरे जी का संदेह मिटे. फिर वह भाटन बोली, अब तुम कहीं मत जाओ, और संतोष कर रहो, कर्म का लिखा फल यहीं बैठे पाओगे. फिर भाट ने कहा, कि