Page:Singhasan Battisi.pdf/103

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 o अनूपवती पंदरवीं पुतली

                * अनूपवती पंदरवीं पुतली बोली •

‘सुन राजा! बीरबिक्र्माजीत के गुन, कहने में नही आसकते, जो बात कहने ओग होथे तो कहिये, अचुक्त कहते हुये है"।राजा बोला तु कैइ मेरा बी सुन्ने को चाहता है,वैसी बात जई वैसी कह, इस में तुझे दोष नहीं, ‘तब पुतली बोली,” अच्छा अब मै कहती हू,तू कान देकर सुन।एक दिन राज बीरबिक्रमाजीत सभा में बैठा था और कहीं से पंडित आया उजे आकर राजा के खननुख एक चोक पढ़ा, सुन कर राजा मन में बहुत प्रसन्न हुआ बजत असच जआ उख ओक का मुद्दच्या था. था, मिश्च ड्रोही, और बिन्यास घाती, जो हैं सो नरक भोग करेंगे, जब तखक चाँद और सूरज हैं • वह सुनकर राजा ने लाख रुपये उस बिराहान को दान दिये, और कहा कि इस का अर्थ मुझे खमझा कर कहा कि इस्र का बिर्तेत का है? तब वुह बिराह्मन कहने लगा कि एक बड़ा अज्ञानी राजा था, । उसकी एक रानी जो थी, प्रान का आधार थी, पल भर भी बुह राजा उसे आप से जुदा न करता था, जब सभा में बैठता, तो साथ ही जांच पर खे बैठता, और जब शिकार को जाता, दूसरे चोखे पर बिठखा साथ खे खेता * गूरज जागणा, खोणा, खाणा, पीना, एकही साथ था, पर ऐसा मूर्ख था, कि किसी से पतचाता न था रानी को निगाह में रखता. एक दिन उसके प्रधान ने औखर पाकर, हाथ जोड़े, और सिर निवा, कहने लगा कि खामी ! जो मुझे जीदान दो, तो मैं एक निवेदन करूं, राजा ने कहा अच्छा: