“आरो बहा दिन से बड़ी बोदी के ई घरों में आन जान भी कम होय गेलों छै, दिखावै के कत्ती बड़की बोदी आरो लपकी बोदी एक दूसरा के घोर ऐतें-जैतें रहें।" मंगलियां आपनों माथों पर हाथ फेरतें कहले छेलै।
“होना के जे कहैं, मंगलिया; अमर आरी बलजीत के मनों में जरियो टा भेद नै ऐलो छै, बड़का बाबू से दोनों के पहिलके नाँखी व्यवहार छै, बलुक कुछ बढ़िये के। आखिर ते पढ़-लिखले छै कथी लें, आबें तें अमरजीत के सरकारी नौकरियो लागैवाला छै, गाँव भरी में यही बात महीना भरी से घुमी रहलो छै; आखिर कैन्हें नी होतै, ई तें गाँव भरी में पहिले दाफी होते कि कोय छवारिक सरकारी नौकरी में जैतै, वहू में बिहारों के नै, दिल्लीवाला सरकारों के नौकरी में। सुनै छियै, रेल चलैतै। बड़का बात ते छेवे नी करें, मंगलिया। यहाँ तें मोटर हाँकैवाला ड्रायवर के मिजाज देखवे करै छें, की रं गनगन करै छै, तबें रेल चलावैवाला के मॉन केन्हों होते-होते, सोच्छै पारै छै।”
"माधो, जो अमरजीत बौंसी, भागलपुरवाला रेल चलावै, ते मजा आवी जाय। की मजाल, कि कोय टीटी सी, बी टी सी हमरा सिनी से टिकिट माँगी लौ। मजे आवी जाय। रोज फिलिम देखी के कचकचिया लौटियै।”
"कचकचिया नै, दौलतपुर बोलें, बेवकूफ।” माधो झिड़कतें कहलकै, “सुनै छियै, दहेजों में ढेरे टाका मिलैवाला छेलै, बड़काहै मामा ठीक करलें छेलै। सब बात पक्कियो होय गेलों छेलै।"
चेथरीं कोय बातों पर कटियो टा ध्यान देले बिना कहले छेलै, "र्ते सत्ती बोदी हेना कैन्हें बगदी गेलै?"
“अरे, कै दाफी तोरा बतलैवौ कि लछमी दां भरलो सभा में हाथ उठाय के कहले छेलै, कि हुनी आपनों कोय बेटा के दहेज नै लेतै।”
“अरे, तें ई बात गोस्साय के बोलै के की जरूरत है, आरो कॉन ई बात जेनरल कॉलेज के छेकै, जेकरा याद रखला से सरकारी नौकरी मिलिये जैतै।”
चेथरी के उखड़लों मिजाज देखी के मंगली नरमैते हुए कहलकै, “से तें नहिये छै, मुदा गाँव, टोला में पहिलो दाफी हेनों प्रतिज्ञा कोय करलकै, ते ओकरा भुलैलों केना जावें पारें।
“से ते नहिये, मतर हमरा लागै छै, है जे कुछ होलो छै, आरो