Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/68

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घरों के दीवारी पर लोत-पात उगाना शुरू करी देलकै । की पूसों के ठंड आरो की बैशाखों रॉ घाम | बोदी के रंग सिनुरिया आम नाँखी छेलै, वही धूप आरो ठंडा सें कारों लागे लागलों छेलै । खेती-बारी में हुनकों है मेहनत देखी के कोयरी टोला के सवासिनो सिनी दंग रहै ।"

"ठिक्के बोलै छो । बीड़ियो तांय बनाय के काम करलकै; केकरों वास्तें ? बुतरुवे सिनी लें नी । ओक पर देखों, एक बेटा जुआन होय से पहले मुँह मोड़ी गेलै | करेजों कूटी के रही गेलों छेलै, बोदी | शायत एत्ते नै टुटतियै, जत्ते मंझला बेटा के नुकसान से टूटी गेलों रहै । जे भी कहों, भैसूर आरो बड़ी गोतनी लागले रहलै, बोदी के पीछू-पीछू, बहू दू-चार महीना नै, सालो-भर, जब तांय, सत्ती बोदीं अपना के ठीक से संभाली नै लेलकै । । "बड़ों घरों के यहा तें पहचान होय छै, बासमती । बड़ों घॉर, की जात आरो धोन से बनै छै, शील सें बनै छै, जे वैद्य बाबां पैलें छै, आरो वहा रं हुनका बोमाँओ मिललों छै । कटियो टा कोय कम-वेस नै । जो हेनों नै रहतियै, तें की समझे हैं, सत्ती बोदी हैं जहाज संभालें पारतियै ? कत्तों हियाववाली कैन्हें नी रहें । जनानी तें जनानिये छेकै विपत्ति में मरदाना के मदद नै मिलें, तें समझों बीच गंगा में नाव के पेंदा में छेद । नाव के भाँसन्है छै, डूबन्है छै ।”

“देखलौ नै, जॉन दिन बोदी काँखी में पोटरी समेटले आपनों दुआरी पर उतरलो छेलै, केना हुलसी के बड़ी बोदी ऐलों छेलै, द्वार खोलै लें, तखनी तें हमें वाँही छेलियै, विसु के बाबू के दवाय लानै ले गेलों छेलियै । शायत बराण्डे से बड़ों दां बोदी के एकपैरिया रास्ता से ऐतें देखी लेले छेलै, से हमरा कहलें छेलै - देखै छियै, बलजीत - माय आवी रहलो छै, तोहें एक दवाय लै जा, दू दवाय सँझकी वक्ती आवी के लै जैय्यों - आरो हुनी बड़की बोदी के बोलाय के सत्ती बोदी के आवै के बात बतैलें छेलै । घंटा भरी तें हमें वहाँ रुकले होवै । ओत्ते दिनों के बाद छोटी बोदी आवी रहलों छेलै, विना सामना से देखला घॉर केना निकली जैतियै ।” टिकुलियां हाथ चमकाय चमकाय के कहले छेलै |

"नै पूछों दीदी, कॉन टोला के दू-एक जनानी एकेक करी के नै ऐलो छेलै आरो सत्ती बोदी हुलसी- हुलसी सबकें बैठे लें कही रहलो छेलै । भला ओतें - ओ जनानी के कहाँ बैठेतियै । एकटा बड़ों रं खटिया निकाली