ला। हदमदैला सें तें ओछरवे अच्छा । ई डेढ़ बीघा जमीन की होलो छै, पोखरी में बोचों आवी गेलो छै, कखनी के जबड़ा में फँसी जाय, कोय्यो नै जानै छै ।”
"नै बेटा, हमरा जबड़ा में नै फँसना छै । हमरा की लेना, जॉर जमीन सें । ऊ समस्या हुनकासिनी के गोतियारी झमेला छेकै, हम्मे कथी लें फँसे लें जैवों । जानें जो आरो जाने जाँतों । हम्में इखनिये जाय के बड़की बोदी के बताय दै छियै कि सत्ती बोदी ऐली छेलै, आरी दू दिन बौंसी में रहलों छेलै, कैथटोली में हिनका सिनी के कोय लॉर-जॉर है, हुनकै कन। वाहीं से चतुरानन जी के लैके बाँका चल्लो गेलों छेलै, हमरा बौंसिये में छोड़ी कें, मसूदन मंदिर के बाहरे हम्में गोधूली बेरा तांय बैठलों रही गेलों छेलियै । जबें बोदी लौटलै, तें हुनकों चेहरा पर चमक छेलै, एतना ते हमें गमिये लेलें छेलियै, एकरों मतलब साफ छेलै कि जे काम वास्ते हुनी बाँका गेलों छेलै, ऊ काम होय गेलों छेलै, आकि अड़चन दूर होय गेलो होतै । एकरों बाद बोदी हमरा चतुरानन जी के साथ गाँव लौटी जाय के बात कहले छेलै, ई कही के कि हमें भागलपुरवाली टरेन पकड़ी लेवै । एकरों बाद हम्में कुछुवे नै जानै छियै, कैन्हें कि हम्में तें चतुरानन मिसिर जी साथै लौटी ऐलो छेलियै, बस, बीस कदम आगू-पीछू।"
“जों, है बात तोहें बड़ों दा आकि बड़की बोदी से बोली दौ, ते चिरियारी-बरियारी वाला बाते न हुऐ, आरो कीय बटेसरा हेनों आदमी मारी खाय लें बची जाय।” अजनसियां आपनों बात तरत्थी पर तरत्थी रगड़ते हुए कह छेलै ।
“कल नै, हम्में इखनिये जाय के बड़की बोदी से बताय दै छियै । तोहें निकलों, हम्में घोर समेटी के आवै छियौं ।” जखनी अजनसिया खिरनी धनुकायन के यहाँ से निकललों छेलै, तखनी सूरज तीन बाँस ऊपर चढ़ी ऐलों होते।