कसर बाकी नै रहलै । बात होलै कि पनछेछरों दूध के लैक बूधो दां केशो दा के दुआरिये पर पहुंची के जोरों-जोरों से कहें लागलै, "दूध दै रहलों हैं, कि पानी? एक गिलास दूध में दू गिलास पानी । एकदम छुर्र पानी।" बस की दू छेलै, बमकिये नी गेलै केशोदा । बोलतें बोलते यहू कही देलकै, कि, देह केन्हों कि देशला गाय के पिठाली रं दूध पचाय लें ऐलों छो । एक दिन पीवे, तें दोनों कोठा चलें लागतौ । ऊ तें तोरों नसीबों से ई जरसी गाय निकली गेलौ, नै तें देसला के दूध से अब तांय घाट पहुँची गेलो होतियैं।' बस य सब बात के लैक जे हूल- हुज्जत शुरू होलो छै, ते परसू सॅ नै रुकलों छै । चलियै, सलटाय दियै। तें, चलै छियौं बड़का दा। प्रणाम ।" ई कही के सकीचन उठलों छेलै आरो सीधे सिधयाय गेलो छेलै ।
ई बात हेनों छेलै कि केकरों हँसी आवी जैतियै, मतर आशु बाबू साथें हेनों नै होलों छेलै । हुनी आपनों आँखी पर से गोल चश्मा हटैलें छेलै आरो दोनों गोड़ कुर्सी पर चढ़ाय के वहा रं चुकुमुकू बैठी रहलों छेलै, आपनों माथा छपरी दिस करते हुऍ ।
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“हे बोदी, ऊ लड़का सें फूलमती के बीहा....नै जानौ कैन्हें मनों के विचलित करै छै ।" सत्ती चूलों रॉ लट्ठों आपनों कपाड़ों से हटाय के पीछू करतें कहलकै ।
“कैन्हें, की होलै? लड़का में कोन ऐव सुनी ऐलौ की, आरो केकरा से ?" अनुकंपा रों चेहरा के चमक हठासिये फीका पड़ी गेलों छेलै । “हम्में उपराम्है के एकटा सवासिन- मुँहों से सुनले छियै कि लड़का चोरी-चपाटी लै के समाजों में कोय भला नजरी से नै देखलों जाय छै । "
सत्ती सामना के बातों के बिना कुछ खयाल करले कहले छेलै, जेकरा सुनहैं अनुकंपा मुँहों पर अंचरा राखी के खिलखिलाय उठलों छेलै, “तहूँ, ननद, कहाँकरों और कहैकरों बात उठाय के लै आनले छो। अरे, ई