जोरिया नै बह्रै छै । देखों नी ओकरों की नाम छेकै । हों याद ऐलौं....कोकरा नदी. . सावन-भादो के दिन । भले चानन नदी के धार काटी के लानलों गेलों रहे, तखनी तें ऊ चानने रं खौली रहलों छेलै । आरो गाड़ी व कोकरा नदी के पुलों पर आवी के खाड़ों छेलै, टिकिट के पैसा वसूली वास्तें | फेनु की छेलै, अमरजीतें आव नै देखलकै ताव, मोटरगाड़ी के छत्तों में सीधे कोकरा नद्दी में धौंस दैये नी देलकै । सुनै छियै, जोरिया किनारी पर रहैवाला एक दू आदमी तैरी के ओकरा बचैय्यो के कोशिश करलकै, मतर हौ खलखलैर्ते धारों में भला पकड़ें पारतियै !”
“अरे, ई नी बतावों, कि अमरजीत के की होलै ?" आशु बाबू एकदम बेचैन होय उठलों छेलै आरी गोड़ नीचे करै के जल्दीबाजी में हुनी खुद्दे कुर्सी समेत डोली गेलो छेलै ।
" देखियों बाबा, संभली के ।” हुनका इस्थिर देखी के विसुनदेवैं बिना देर कर हैं कहले छेलै, "अमर के की होना छेलै, बाबा । ऊ तें हेन्है के तालापुल में है पारों से हौ पार हेलैवाला लड़का छेकै । वहू कि सौनों-भादों धारों में, जे ताला पुल के धार कोकरा सें तनिये-मनिये कम बूझो । "
विसुनदेव के बात सुनी के आशु बाबू के मुँह ऊपर दिस उठी गेलों के छेलै, आँख बंद होय गेलो छेलै, आरो दोनों हाथों के औंगुरी सिनी टेबुलों पर अपने-आप जुड़ी गेलों छेलै; जेना भगवान के प्रति आपनों श्रद्धा निवेदित करते रहें । कुछ देर वास्तें हुनी वही अवस्था में रहलै, शायत बेसिये। किशुनदेव घोर जाय के हड़बड़ी में कहले छेलै, “तें जैय्यौं, दादा?” “हों, जा।” आशु बाबूं सचेत होते कहले छेलै, आरो वहा रँ चेहरा ऊपर दिस करी के आँख मुनी लेले छेलै हुनको दोनों हाथ के अंगुरी होन्है के आपस में अपने आप फेनु जुड़ी गेलों छेलै ।
(७)
आशुतोष बाबूं हफ्ता भरी तें जरूरे ई घटना के छुपैले राखलकै ।