है सुनला के बादी कोय फरक नै पड़लों छेलै, जेना वैं कल्लर के है बात सुनले नै रहें । कुछ गमिये के बोलले छेलै, “अच्छा, आयको सभा यहीं खतम । आगू के बात आ कल ।”
(६)
आशुतोष बाबू यानी कि बलजीत के बड़का बाबू, हिनका गाँव भरी में आर्थो लोग तें वैद्यबाबा आकि वैद्यदादाहै कहै छै या तें फेनु बड़का बाबुए कही के काम चलाय छै, गाँव में हिनी वैद्यगिरी बीस-पचीस सालों से करी रहलों छै ।
पहिलें तें हिनी हिन्- हुन्ने के कामे करी आपनों घोर चलाय रहलों छेले, मतर केकरौ कन हिनका सरल आयुर्वेद चिकित्सा नाम के कोय पुरनकट्ठी किताब की मिललै कि ओक पढ़ी के गाँव-टोला के इलाज करें लागलों छेलै । पहिले तें मंगनिये में जड़ी-बूटी दै दै, फेनु एक आना लिएँ लागलै आरो एक आनाहै अभियो तांय फीस छै । बीमारी कोय किसिम के रहै, गुरीच के काढ़ा हुनी पीयै लें जरूरे बतावै छै, आगू कहुआ के सेवन करे लें ।
दवाखाना की हुनको दवाखाना छेलै, ओसरा के पाँच हाथ के टटिया से घेरी लेलें छेलै आरो वही में एकटा कुर्सी आरो टेबुल आपनों लेली राखी ले छेलै । टेबुले पर चार अंगुरी के लंबा-चौड़ावाला कागज के ढेर सिनी गोछियैलों टुकड़ा, जे अखबार के काटलों कतरन छेलै । रोगी के बैठे के स्थान ओसारै पर छेलै ।
पहले जे रं हिनी मुफ्ते में जड़ी-बूटी दे देलें छै, आयकल वही रं स्वस्थ रहे के विधियो भी बतेवों शुरू करी देलें है। यै लेली हिनी अलग-अलग गत्ता पर स्याही से दू-दू, चार-चार पंक्ति के कविता लिखी के टांगी देलें छै । है बात कोय चार-पाँच रोज के नै, रातिये से हिनी है बदलाव करलें छै । से जखनी विसुनदेव महतो पेटचल्ली के शिकायत लैक हुनको पास ऐलै, तें रोग