Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/87

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छेलै। पुतोहू के कोय कपड़ा - लत्ता नै छुटी जाय, से घरों के कोना-कोना, अलगनी आरनी पर घुराय-फिराय के नजर फेरी रहलो छेलै।

“कुछ बोललें नै माय !" अमर ने फेनु आपनों बात राखलकै, ते अबकी ऊ चुप नै रहे पारलै। खटिया पर बैठली-बैठली आपनों दोनों हाथ के एक साथ पीछू करलकै आरो ओकरे बल्लों पर देह के सीधा करते कहलकै, "तें आबे की चाहै हैं, कि जॉन घरों में तोरों बाबू के छाया भोरे से साँझ तांय टहलते रहै छै, ऊ घोर आरी छाया के साथ छोड़ी, हम्में एक मुट्ठी सुख लें, तोरों साथ परदेसों में बसी जांव। ई जिद छोड़ी दे, बेटा। आरो जों जान्है लें चाहै छै, तें जानी लें, ई मनों में बस एक्के किंछा छै, कि जोन माँटी पर तोरों बाबू के ठठरी समैलों छौ, वही माँटी में हमरो ई ठठरी समावें। एक से बढ़ी आरो सुख की होतै, हमरों लें | तोहें नौकरी पर जाय रहलों छों, पुतोहू के रोकी नै रहलों छियौं, हों, जों तोरों इच्छा हुऔ, तें बलजीती के साथ लै जो। जीं तोरों पुण्य फल से यहू पढ़ी-लिखी के कोय रोजगार पकड़ी लै छै, ते बुझवै, तोरों बाबू रॉ जे मॉन छेलौं, ऊ पुरी गेलै। ” एतना कही ऊ चुप होय गेलै। अमरजीतो आगू कुछ नै कहलकै, यहू लें कि वैं माय के जिद जानै छै; नै तें नै, हों तें हों। फेनु यहू बात छेलै कि सत्ती के आँखी के कोर ई सब कहते-कहते डबडबाय उठलों छेलै, शायत वहीं से वै दोनों आँख मुनी लेलें छेलै, जे अमर से छुपलों नै रहे पारलो छेलै।

अमरजीत कोठरी से बाहर निकली ऐलों छेलै ते देखलकै, घोष बाबू ऐंगना के बाहर हिन्ने हुन्ने बड़ी तेजी से घुमी रहल छेलै। देखलकै ते ऊ बाहर निकली ऐलै | गोड़ छूवे लागलै, तें घोष बाबूं ओकरों दोनों हाथ पकड़लें कहलकै, "कल्हे विहाने नी निकलवा, बेटा?"

“हों, बड़का बाबू ! जते जल्दी भागलपुर पहुंची जाँव - कैन्हें कि ट्रेन तें वांही से मिलतै।”

“से ते छै, बेटा। मय्यो के साथ ले जाय रहलों छो नी? यहाँ असकल्ली रही, कोय-नै-कोय बातों के लैके आरो खिन्न रहतौ। वहाँ नैकी बो साथें रहतै, तें मॉन बहाल रहतै। बलजीतो के भी साथ लै जाय रहलों छै ते?" “कल्हे से माय के कही रहलो छियै। एकदम से नै मानी रहलों छै। तोहें तें माय के जिद जानवे करै छौ। हों, बलजीत के साथ जरूरे लै जैवें,