कोय डोमकच खेलै वास्तें रुकवे कथी लें करतियै। होन्हौ के सबकें मालूम छेलै, ई घरों में कोय मरदाना रहौ कि नै रहौ, असकलिये कोय जनानिये कैन्हें नी रहें, कोय डॉर-भय के बाते नै छै। होनौ के ई बस्ती में कोय चोरी डकैती के बातो दूरे छै। हिन्हें से कोय डकैत निकलवो करै छै, तें ई घरों से दस बाँस हटिये कें। हेने एक समय में ई घरों के मालिक के रुतवा रहलों छै। आर्बे खगी गेलै, तें की होय छै।
ते एकरा से की ? डोमकच नै होतै- सकीचन - माय के रहलो नै गेलै। ऊ मने-मन बोललै, "कोय चोरी - चपाटी के भय रहे कि नै रहें आरो कोय साथ दौ कि नै दौ। जब ऊ यहाँ छै, तें डोमकचो होते, आरो वैं फाँड़ो कस्सी के ऐंगना में पूरब दिस मुंह करी हाथ चमकाय चमकाय गावे लागले,
अनारवती डुमरी, तोरों डुमरा कहाँ गेलों गे
केना बेचै हैं सुपती मौअनियां, केना बेचै छै डलिया
फेनु जल्दिये से समीचन माय पूरब दिस आवी के पछिये मूं करी उत्तर में बोलै लागले छेलै,
अन्नी-दुअन्नी सुपती मौउनिया
टाका बेचै छी डलिया
डोम्मां गेलै पर देस
के बटिया, हमें ऐ
हटिया
सत्ती के अनुकंपा हाथ पकड़ी के ऐंगन लै आनले छेलै ते देखलकै सकीचन - माय माथा पर एक डलिया लेले गोड़ हुन्ने फेकी- फेकी गैवो करी रहलों छेलै,
जेठो नै ऐवौ वैशाखों नै ऐवौ
ऐवौ कातिक महीना
दोनों ननद-बोदी, वहीं ठां दू मचिया खींची के बैठी रहलै। सकीचन माय के तें जेना मोरों के पंख लागी गेलौ रहें।