Page:Sakuntala in Hindi.pdf/42

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कुछ आंच तुझ में और तेरे बाणों में अब तक ऐसे बनी है जैसे समुद्र में बड़वानल । और जो यह हेतु न होता तो तू भस्म हो चुका था । फिर वियोगियों के ह्रदय को कैसे जलता । हे कुसुमायुध स्नेही जनों को तू और चंद्रमा दोनों विसासी हो । तेरे बाणों को फूल केहना और सुधाकर की किरणों को शीतल बखाना ये दोनों गत हम वियोगियों के लिए असत्य दिखाई देती हैं । क्योंकि हम को कलानिधि आग बरसाता है और तेरे बाण वज्र समान लगते हैं । इस पर भी है मीनकेतन तू मुझे प्यारा लगता है क्योंकि तू मुझे मृग-नयनी की सुध दिलाता है । हे महाबली पक्षशर मैंने तेरी इतनी स्तुति की । तुझे अब भी दया न आई । नहीं । मेरे विलाप ने तेरे बाणो को सौ गुनी पैनी कर दी है । हे मदन यह तुझे योग्य नहीं है की मेरे ह्रदय में गंभीर घाव करने को आपने धनुष की प्रतिज्ञा कण तक खैंचे । हाय जब यज्ञ समाप्त होगा, तब ऋषिओं में बिदा होकर मैं कहा अपने दुखी जीव को बहलाऊंगा । प्रिया के दर्शन बिना कोई मुझे धीरज देने वाला नहीं है । अब उसी को ढूँढू । इस घाम को प्यारी कही मालिनी के तट पर लताकुओं में सखियों के साथ बिताती होगी । शायद वही चलूँ । मेरी जीवनमूल यही हो गयी है क्योंकि जिन डालियों से फूल तोड़े हैं, उनका दूध भी अभी नहीं सूखा है । यहाँ पवन कमलों के सुगंध के लिए और मालिनी की शीतल तरगगो की देह को स्पर्श करने आती है । कही इन्हे वीटो की लातामराइल में प्यारी होगी । इन वृक्षों में तोह देखूं । अब मेरे नेच सफल हुए । मनभावती उस पटिया पर फूल बिछाए पारी है और सखी सेवा में खड़ी हैं । अब चाहो सो हो इन्के मत की बातें सुनूंगा ।।