Jump to content

हरे-हरे निमुआँ के हरे-हरे पातवा से ताही तले

From Wikisource
हरे-हरे निमुआँ के हरे-हरे पातवा से ताही तले
by महेंदर मिसिर
301338हरे-हरे निमुआँ के हरे-हरे पातवा से ताही तलेमहेंदर मिसिर

हरे-हरे निमुआँ के हरे-हरे पातवा, से ताही तले।
सइयाँ धुनिया रमवलें से ताही तले।
हमरा सइयाँ जी से केहू जनि बोले से धीरे-धीरे
रस बेनिया डोलइबों से धीरे-धीरे।
हमरा सइयाँ जी के बड़ी-बड़ी अँखिया से हमरे से
ए लड़ाइले नजरिया से हमरे से।
काहू के गज मोती अन धन सोनवाँ से मोरा लेखे,
मोरा सेज के गहनवाँ से मोरा लेखे।
कहत महेन्द्र सुनु सखिया सीहागिन हम मनाइलेबो
आपन रूसल मोहनवाँ मनाई लेबो।


This work is now in the public domain because it originates from India and its term of copyright has expired. According to The Indian Copyright Act, 1957, all documents enter the public domain after sixty years counted from the beginning of the following calendar year (ie. as of 2024, prior to 1 January 1964) after the death of the author.