सोने में देखिया के पीता हूँ शराब

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रचनाकार:क़ुली 'क़ुतुब' शाह

सोने में देखिया के पीता हूँ शराब
आशिक़ाँ का दिल हुआ उस थे कबाब

मेरे बुत कों पूजते सारे बुताँ
सभी रम्मालाँ कहो उस का जवाब

शुक्र ओ शुक्र ओ शुक्र लाखाँ शुक्र है
मेरी मजलिस कों मुल्क ना देखें ख़वाब

आसमाँ कहने कुनह मुश्किल बहुत
गर कहेंगे तो कहेंगे बु-तुराब

आशिकाँ के शेर थे जगमग उठे
मेरी आह का आग है ज्यूँ आफ़ता

कुतुब शह, बंदा गुनह-गार अब अहे
सब करो याराँ दुआ होगा सवाब