संसार बंधन

From Wikisource
Jump to navigation Jump to search

रचनाकार:कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज'

अरे मन चंचलता तुम त्याग। भटकहु जनु तुम स्वान सदृष धरु कृष्ण भजन अनुराग।। कबहूं गृह की चिन्ता कबहूं वित्त वृ़द्धी उद्योग। कबहूं कलह करि परम मित्र सहेत दुःख वियोग।। शत्रु दमन उत्साह कबहुँ निराशा भारी। आशा मे राज राज्यमनोहर कबहुँ करो तैयारी।। कबहुँ पर कामिनी की इच्छा कबहुँ धर्म की ओर। शंखो करत रोग की कबहुँ वृत्ति धरो ठगचोर।। काम क्रोध मद मोह मत्त तुम भ्रमों ऐसे ही रोज। सब तजि के एक कृष्ण चरण पे होउ लवलीन सरोज।।