शिव-राग

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शिव-राग
by चन्दा झा

शिव निन्दा जनु रटु वटु कटु लगइत अछि कान।
प्राणहुँ सौं से अधिक छथि देव देव भगवान।।
दरशन शास्त्र निपुण अहाँ सकल वरन परधान।
किअ हिअ देलनि एहेन विधि दारूण कुलिश समान।।
भोजन करू मन इच्छित शिक्षित करू जनु नारि।
ओ विभु सम जनितहिं छथि हृदय गुपुत त्रिपुरारि।।
कह कवि चन्द्र उमा प्रण वचहिं के सक टारि।
शिव पालक सभ लोकक अपने भेष भिखारि।।

This work was published before January 1, 1929, and is in the public domain worldwide because the author died at least 100 years ago.

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