पिया मोरा गइले सखि हे पुरूबी बनिजीया

From Wikisource
Jump to navigation Jump to search
पिया मोरा गइले सखि हे पुरूबी बनिजीया
by महेंदर मिसिर

पिया मोरा गइले सखि हे पुरूबी बनिजीया से दें के गइलें ना।
एगो सुगना खेलवनारामसे दे के गइलें ना।
तोहरा के देबों सुगना दूध भात खाओ से ले के सुतबों ना।
दुनो जोबना का बीचे राम से लेके सुतबों ना।
धरी रात बीतलें पहर रात बीतलें से काटे लगलें ना।
मोरा चोलिया के बंदवा राम से काटे लगलें ना।
एक मन करें सुगना धई के पटकिती से दोसर मनवाँ ना।
हमरा पिया के खेलवना से दोसर मनवाँ ना।
उड़ल-उड़ल सुगना गइलें पुरूबवा से जाके बइठेना।
मोरा पिया के पगरिया से जाके बइठेना।
पगरी उतारी पीया जांघे बइठवले से पूछे लगलें ना।
आपना घरवा के बतिया राम से पूछे लगलें ना
कहत महेन्दर सुनी सुगना के बतिया पिया सुसुके लगलें ना।
सुनि के धनिया के हलिया पियवा सुसुके लगले ना।

This work is now in the public domain because it originates from India and its term of copyright has expired. According to The Indian Copyright Act, 1957, all documents enter the public domain after sixty years counted from the beginning of the following calendar year (ie. as of 2024, prior to 1 January 1964) after the death of the author.

Public domainPublic domainfalsefalse