Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/99

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बोदी से मिली के समधियारों लौटी जैतै होतै। पर समधियारा में कोय रहौ पारें करें | बहुत तें पाँच-छो रोज, बहू नै। देखियें नी दसमे रोज यहाँ दिखते, सत्ती नैकी बोदी।” माधो मिसिर ने कान्हा से नीचे लटकी ऐलो जनेऊ के ठीक से कंधा पर रखते कहलकै, ते गुलगुलिया, भदेवा, अदरी आरो अनारसी ने एक्के साथ कहलकै, “हुऍ पारे छै।"

कि तखनिये मंगलिया दायां हथेली के ऊपर करते कहलकै, "रुकें, जल्दी निष्कर्ष पर नै पहुँची गेलो करें। जेना लागै छै, तोरा सिनी के ई बोदी के मॉन-मिजाज के बारे में कोय पते नै छौ। नैकी बोदी, कविराजिन बोदी नै छेकै - कपली गाय रं सिद्धि। सत्ती बोदी के मन में बहुत कुछ उमड़-घुमड़ते रहै छै, जेकरा सिरिफ हुनिये जानै छै।”

“ई तें ठिक्के कहलैं” सिरचनै समर्थन में मूड़ी हिलैत कहले छेलै, “ऊ दिन देख नै, कविराज दा, कर्ते समझतें रहलै, नैकी बोदी कें, कि पंचामृत बाबू के पंचैती करै वास्तें बुलाय के जरूरते की छै, मतर मानले छेलै की? लै आनले छेलै आपनों लालदा के। बहू कतें छोटो बात वास्तें - डाँड़ हौ दिशों से नै, है दिसों से हुनको खेत में जैतै।" - “ हौ दिन वैद्य दा के मनों के कर्ते धक्का लागलों छेलै, मतर, सब कुछ सही लेलॅ छेलै।” सिद्धि बहुत देर के बाद आपनों मुँह खोललें छेले, जे अभी तांय साधो से बतियाय रहलों छेलै।

साधी ने मूड़ी के कंठी तांय दू-तीन बार लानतें उठै सिद्धि के बात के समर्थन करलें छेलै, तें कपिल बोली पड़लै, "मूड़ी गांती के की हामी भरी रहलो छै, खखसी के कहै नी 'हों।" डॉर लागै छौ, नैकी बोदी से की ? की भोजों में खैलों मछली कुछ बोल्है नै दै रहलों छौ?”

“यैम डरै के की बात होलै। जे सच छेकै, ऊ तें सच्चे छेकै, ओकरा हम्मू कहवै, तहूं कहवैं, आरो वैदराजिन बोदियों कहतै।”

“सिद्धि, गलत की कही रहलो छै” सिवनें सिद्धि के बात लोकर्ते कहलकै, "है ठीक छै कि सत्ती बोदी के वेवहार हमरा सिनी के प्रति कभियो भी, कटियो टा भी खराब नै रहलै, मतर यही बात जेठ आकि जेठानियो के प्रति हुनको रहलै, है के कहें पारें। वसोवासी जमीन के बेचै वक्ती ओतें जे कुछ होलै, केकरा से छुपलों छै। " “जमीनवाला विवाद रुकवे कहाँ करलों छै । आबें सवा बीघा जे